भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। आज चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि है। इस तिथि को शीतला अष्टमी के रूप में मनाने की परंपरा है। इस दिन महिलाएं ठंडे भोजन का मातारानी को भोग लगाती हैं। विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं। मान्यता है कि चैत्र कृष्ण सप्तमी व अष्टमी पर शीतला माता की पूजा करने से अग्निकांड आदि घटनाएं नहीं होती। शीतला अष्टमी को बासौड़ा भी कहा जाता है। अष्टमी पर माता शीतला का पूजन व बासी भोजन का अर्पण किया जाता है।
महत्व
सर्दी से गर्मी के इस ऋतु परिवर्तन काल में बच्चों में छोटी माता चेचक का प्रकोप और मस्तिष्क ज्वर न हो, इस कारण शीतला माता की पूजा-अर्चना महिलाओं द्वारा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि शीतला माता की पूजा करने से चेचक, नेत्र विकार आदि रोग होने का भय नहीं रहता है। यह भी कहते हैं कि शीतला माता की विधिवत पूजा करने वाली संतानहीन महिलाओं को जल्द ही संतान-सुख की प्राप्ति होती है।
पूजन मुहूर्त
चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथि 14 मार्च मंगलवार को शाम 08:22 बजे से शुरू होकर 15 मार्च बुधवार को शाम 06:45 तक रहेगी। उदया तिथि के हिसाब से बुधवार 15 मार्च को शीतलाष्टमी मनाई जाएगी। शीतला माता के पूजन का शुभकाल आज सुबह 06:31 से शाम 06:29 तक रहेगा।
पौराणिक कथा
पंडित रामजीवन दुबे ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार एक बार किसी गांव में लोग शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे। तब उन्होंने गरिष्ठ भोजन माता को प्रसाद के रूप में चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतीक मां शीतला का मुंह इससे जल गया और वे नाराज हो गईं। उन्होंने कोप दृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। केवल एक बुढ़िया का घर सुरक्षित रहा। गांव वालों ने बुढ़िया के पास जाकर इसका कारण पूछा। तो उसने बताया कि वह रात को ही भोजन बनाकर रख ली थी। उसने मां को भोग के रूप में उस ठंडा-बासी भोजन को खिलाया। इससे मां ने प्रसन्न होकर उसके घर को जलने से बचा लिया। उसकी बात सुनकर गांव वालों ने मां से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली अष्टमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का पूजन किया।
पहले बना लिया जाता है भोजन
शीतलाष्टमी के दिन सुबह महिलाएं एक रात पहले पकाए गए भोजन का भोग शीतला माता को लगाकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन शीतला माता समेत घर के सदस्य भी बासी भोजन ग्रहण करते हैं। इसी वजह से इसे बासौड़ा पर्व भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना उचित नहीं होता है। यह सर्दियों का मौसम खत्म होने का संकेत होता है और इसे इस मौसम का अंतिम दिन माना जाता है।
पूजन विधान
सूर्योदय से पहले उठकर ठंडे जल से स्नान करें। इसके बाद शीतला माता के मंदिर में जाकर देवी को ठंडा जल अर्पित करके उनकी विधि-विधान से पूजा करें। शीतला माता को ठंडे भोजन का नैवेद्य लगता है, इसलिए भोजन एक दिन पहले रात में बनाकर रख लिया जाता है। जो जल शीतला माता को अर्पित किया है उसमें से थोड़ा सा बचाकर घर लाएं और उसे पूरे घर में छिड़क दें। मान्यता है कि इससे शीतला माता की कृपा बनी रहती है और घर में रोग-बीमारियां नहीं आतीं।
शीतलता पर जोर
शीतलाष्टमी के दिन गर्म खाद्य पदार्थ नहीं खाए जाते हैं। इसके साथ ही घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। एक दिन पहले ही रात में ही सारा भोजन हलवा, गुलगुले, रेवड़ी आदि तैयार करके रख लेना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन गर्म पानी से नहाने की भी मनाही है। शीतला अष्टमी के दिन शीतल जल से ही नहाने की परंपरा है।
Posted By: Ravindra Soni
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