रायपुर। ब्रज क्षेत्र के मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना में जिस तरह होली का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, वैसी ही परंपरा का पालन राजधानी के दो प्राचीन मंदिरों में लगभग 200 साल से किया जा रहा है। वसंत पंचमी पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप और राधारानी की प्रतिमा के चरणों पर गुलाल लगाने से इस परंपरा की शुरुआत हो चुकी है। यह परंपरा 40 दिनों तक निभाई जाएगी। फाल्गुन माह में श्रद्धालु प्रतिदिन भगवान को रंग गुलाल अर्पित करेंगे। मंदिरों में कुंज एकादशी से रंगों की धूम मचेगी।
सदरबाजार का गोपाल मंदिर
सदरबाजार के गोपाल मंदिर में 100 साल से भी अधिक समय से 40 दिवसीय रंगोत्सव मनाया जा रहा है। यहां एकादशी से लेकर धुलेंडी तक सैकड़ों श्रद्धालु होली खेलने आते हैं। जुगलजोड़ी सरकार यानी राधा-कृष्ण के संग होली खेलने के लिए युवतियाें में विशेष उत्साह नजर आता है।
बूढ़ापारा का गोकुल चंद्रमा हवेली
सदरबाजार से थोड़ी ही दूर बूढ़ापारा स्थित गोकुल चंद्रमा मंदिर में 200 साल से 40 दिवसीय होली खेलने की परंपरा निभाई जा रही है। मंदिर में श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा होती है, जिसे गोकुल चंद्रमा भी कहा जाता है। मंदिर के पुजारी पहले भगवान को रंग-गुलाल अर्पित करते हैं, इसके पश्चात श्रद्धालुओं पर रंगों की बौछार करते हैं। भगवान की ओर से होने वाली रंगों की बौछार में भीगने के लिए श्रद्धालु घंटों इंतजार करते हैं।
35 दिन एक रंग, एकादशी के बाद अन्य रंग
गोकुल चंद्रमा मंदिर में आने वाले श्रद्धालु गोविंद शर्मा बताते हैं कि मंदिर में 35 दिनों तक एक रंग भगवान को अर्पित किया जाता है। कुंज एकादशी से दूसरे रंगों का उपयोग होता है। आखिरी चार दिनों में दो रंग, तीन रंग और फिर धुलेंडी के दिन सभी रंगों से होली खेलते हैं।
3 मार्च को कुंज एकादशी से धूम
साल 2023 में फाल्गुन शुक्ल एकादशी तिथि 3 मार्च को है, इसे कुंज एकादशी, आमलकी एकादशी कहते हैं। इस दिन होली खेलने सैकड़ों श्रद्धालु मंदिर आएंगे। इसके पश्चात 5 मार्च को त्रयोदशी पर तेरस का बगीचा और 7 मार्च को धुलेंडी पर होली की धूम मचेगी।
चार बार खोलते हैं मंदिर का पट
श्रीकृष्ण के बाल रूप गोकुल चंद्रमा काे दूध, माखन, मिश्री का भोग लगाया जाता है। मंदिर का पट चार बार भक्तों के लिए खोजा जाएगा। भगवान के झूले का गुलाब फूल से श्रृंगार किया जाएगा।
Posted By: Vinita Sinha
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