
Uttar Ramayan: उत्तर रामायण में श्रीराम के लंका विजय के बाद अयोध्या आगमन का वर्णन किया गया है। इसमें श्रीराम राज्याभिषेक से लेकर श्रीराम के जल समाधि लेने तक को खूबसूरती के साथ काव्यात्मक शैली में बतलाया गया है। रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि है। ज्ञान के सागर वाल्मीकि ने रामायण को संस्कृत भाषा में काव्यात्मक शैली में कलमबद्ध किया है। उन्होंने बेहद खूबसूरती के साथ श्रीराम की लीलाओं और उनके चरित्र से लेकर उनकी विपदाओं और उनके कुशल नेतृत्व का वर्णन रामायण में किया है।
ब्रह्माजी ने दिया महर्षि वाल्मीकि को ज्ञान
उत्तर रामायण नें सृष्टि के रचयिता ब्रहमा महर्षि वाल्मीकि से कहते हैं कि वाल्मीकि तुम नारद मुनि के द्वारा बताए गए श्रीराम के वर्णन को काव्य रूप में लिपिबद्ध करो। तुमको मेरे आशीर्वाद से श्रीराम का गुप्त या प्रकट कथानक, सीता माता, सभी देवताओं और असुरों का छिपा हुआ चरित्र, जो घटित होने वाला है वह गुप्त होनो पर भी आपको ज्ञात हो जाएगा।
क्रौंच पक्षी के वध के दौरान महर्षि वाल्मीकि के मुख से जो पहला श्लोक निकला वह धरती का पहला श्लोक बना। ब्रह्माजी ने वाल्मीकि से कहा कि तुम्हारे मुंह से पहला काव्य निकला है इसलिए तुम रामायण को काव्य रूप में लिखना। भगवान श्रीराम के वर्णन करने के लिए तुम्हे यह काव्य शक्ति प्रदान की गई है। वाल्मीकि तुम जो लिखोगे वह सत्य हो जाएगा। तुम जो श्रीराम कथा को श्लोकबद्ध कर लिखोगे उससे युगों तक धरती के मानव धर्मपथ पर अग्रसर होते हुए श्रीराम की भक्ति करते रहेंगे।
महर्षि वाल्मीकि ने ब्रह्माजी से किया प्रश्न
परमपिता ब्रह्मा के वचन सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने उनसे पूछा कि यह कार्य उन्होंने उनको ही क्यों सौंपा है। तू ब्रह्माजी ने कहा कि केवल तुम ही इसके योग्य हो। तुम्हारी तपस्या से तुम्हे माता सीता की सेवा करने का सौभाग्य भी प्राप्त होगा। माता सीता के जीवन में भी तुम्हे योगदान देना है। ब्रहमाजी के वचन सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने उनसे पूछा कि इस महाकाव्य की शुरूआत इतनी करूणा के साथ क्यों करना है। ब्रह्माजी ने कहा कि श्रीराम का यह महाकाव्य करुण रस प्रधान है। श्रीराम और सीता जल्द ही बिछड़ने वाले हैं। इस तरह से जगत के रचयिता ब्रह्माजी ने महर्षि वाल्मीकि को श्रीराम का जीवन चरित्र को लिखने की प्रेरणा दी।