यह लगभग सभी जानते हैं कि लाखों किलोमीटर दूर से भी सूर्य की रौशनी नहीं झेल पाते हैं। ऐसी स्थिति में सूर्य के करीब जाकर अध्ययन करना मुश्किल होगा।
सूर्य से निकलने वाली किरणें, रेडियेशन और रेडियो तरंगे किसी भी मिशन में बाधा बनती है। ऐसे में सूर्य के अध्ययन में दिक्कतें आती हैं।
धरती की सतह से सूर्य मूल स्वरूप को समझना नामुमकिन सा हो जाता है। ऐसे में सूर्य के पास पहुंचने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
टेलीस्कोप के जरिए सूर्य का अध्ययन किया जा सकता है लेकिन ओजोन लेयर की वजह से विकिकरण धरती पर छन आती है।
अब केवल एक ही विकल्प है कि सूर्य के करीब पहुंचा जाए, लेकिन सूर्य से आने वाली उष्मा भी किसी मिशन को झेल पाने के लिए सक्षम होना चाहिए।
अब केवल एक ही विकल्प है कि सूर्य के करीब पहुंचा जाए, लेकिन सूर्य से आने वाली उष्मा भी किसी मिशन को झेल पाने के लिए सक्षम होना चाहिए।
धरती के प्रभाव का असर Aditya L-1 पर नहीं पड़ने वाला है, इसके अलावा इस बिंदु पर स्थापित होने के चलते ग्रहण का असर नहीं होगा।
L-1 एक ऐसा प्वाइंट है जहां सूर्य और पृथ्वी दोनों का गुरुत्वाकर्षण एक दूसरे पर काम करता है और उसकी वजह से किसी स्पेस क्रॉफ्ट को लटकाया जा सकता है।
2 सितंबर को ISRO Aditya L-1 को लॉन्च करेगा। जो काफी निर्णायक साबित होने वाला है, सभी की निगाहें इसके ऊपर होंगी।