मयूरेश्वर मंदिर के चारों कोनों में मीनारें और लंबे पत्थरों की दीवारें हैं। चार द्वारों को सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग चारों युग का प्रतीक मानते हैं।
अहमदनगर में करजत के सिद्धिविनायक मंदिर में गणेशजी की मूर्ति तीन फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। यहां सूंड सीधे हाथ की ओर है।
पाली में इस मंदिर का नाम गणेश जी के भक्त बल्लाल के नाम पर है। मंदिर का इतिहास बल्लाल के परिवार से जुड़ा है।
वरदविनायक भक्तों की सभी कामना पूरी करते हैं। इस मंदिर में नंददीप नाम का दीपक है जो कई वर्षों से लगातार जल रहा है।
भीम, मुला और मुथा नदियों के संगम पर थेऊर गांव में है चिंतामणी मंदिर। विचलित मन के साथ इस मंदिर में जाने वालों की सारी उलझन दूर होती है।
लेण्याद्री में गिरिजा के आत्मज यानी माता पार्वती के पुत्र अर्थात गणेश जी का मंदिर है। मंदिर की इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है।
पुणे के ओझर के जूनर में यह मंदिर स्थित है। यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है।
राजणगांव में महागणपति मंदिर स्थित है। पूर्व दिशा की ओर बहुत विशाल प्रवेश द्वार है। यहां गणपति को माहोतक नाम से जानते हैं।
सनातन धर्म के प्रमुख आदिपंच देवों में होने के साथ प्रथम पूज्य भी हैं। बनाते हैंं बिगड़े काम।
गणेशजी के अष्ठविनायक मंदिरों की परिक्रमा मोरगांव से शुरू कर वहीं समाप्त करने से विशेष फल मिलता है।