भगवान शिव के माथे पर चंद्रमा और गले में पड़े सर्प के साथ-साथ हम हाथों में डमरू भी देखते हैं, जानें क्या है इसका धार्मिक महत्व -
भगवान शिव के प्रिय डमरू को डुगडुगी भी कहा जाता है। छोटे से ढोल के आकार वाले इस वाद्य यंत्र में छोटी सी रस्सी से बंधा कांसे का टुकड़ा लगा होता है।
जब मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ तो उन्होंने अपनी वीणा से ध्वनि उत्पन्न की थी, लेकिन सुर का अभाव था। ऐसे में महादेव ने डमरू बजाकर सुर और ताल को जन्म दिया था।
भगवान शिव ने जब डमरू बजाया तो चमत्कारी मंत्र का भी सृजन हुआ। इस प्रभाव से इंसान को तमाम तरह की शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शिव का डमरू बजता है तो नकारात्मक शक्ति दूर हो जाती है और साधक के मन से भय और चिंता दूर हो जाते हैं।
जिस घर में शिव पूजा के दौरान रोज डमरू बजाया जाता है, वहां दुर्भाग्य प्रवेश नहीं करता है। वह स्थान भूत-बाधा और बलाओं से मुक्त रहता है।
डमरू की ध्वनि से व्यक्ति का मानसिक तनाव दूर होता है और भक्त शांत मन से शिव साधना करता है।