किसी भी शुभकार्य का आरंभ करने के पूर्व गणेशजी की पूजा करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता व ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है।
इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्नों का विनाश होता है। ये शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप हैं।
गणों का ईश। अर्थात् गणों का स्वामी। किसी पूजा, आराधना, व कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न-बाधा न पहुंचाएं, इसलिए सर्वप्रथम गणेश-पूजा करके उसकी कृपा प्राप्त की जाती है।
प्रत्येक शुभकार्य के पूर्व श्रीगणेशाय नमः का उच्चारण कर उनकी स्तुति अनुष्ठान में यह मंत्र बोला जाता है।
कहा गया है- गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कबीनामुपश्रवस्तमम् । ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम् ॥
ब्रह्माजी ने कहा कि जो कोई संपूर्ण सृष्टि की परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा, उसे ही प्रथम पूजा जाएगा। गणेशजी'राम' नाम लिखकर उसकी सात परिक्रमा की बने प्रथम पूज्य।
शिव बोले पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करके कैलास लौटेगा, वही अग्रपूजा के योग्य होगा। शिव और माता पार्वती की ही तीन परिक्रमा कर गणेशजी अग्रपूज्य हो गए।