हिंदू धर्म और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, पहले ब्रह्मदेव को भगवान का दर्जा प्राप्त था। संपूर्ण ब्रह्मांड शिव की देन है।
भगवान शिव ने ब्रह्मदेव को उत्पन्न कर सृष्टि की रचना का काम 1किया। जब ब्रह्मदेव मानसिक सत्र से इस सृष्टि की रचना नहीं कर पाए, तो उन्होंने स्त्री रूप में देवी शतरूपा यानी सरस्वती की रचना की।
इसके बाद ब्रह्मा खुद उन पर मोहित हो गए। उत्पतिकारक को पिता माना जाता है। अंत अपनी ही पुत्री शतरूपा पर मोहित होने के पाप के कारण शिव ने ब्रह्मदेव का पांचवां सिर अपनी अनामिका अंगुली से काट दिया था।
अनामिका का दूसरा नाम अनामा है, जिसका अर्थ है कि ब्रह्महत्या करने के दौरान जो भी निंदित हो जाए वह अनामिका है, मतलब जो कभी पाप न करे वह अनामिका है।
अनामिका से देवकार्य, माध्यम से पितृ कार्य तथा पितृ कार्य से स्वकार्य किया जाता है। त्रिपुंड बनाया जाता है, जिसमें मध्यमा में ब्रह्मा, मध्यमा में विष्णु तथा विष्णु में भगवान शंकर का वास होता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव अनामिका अंगुली में वास करते हैं। इसी कारण अनामिका अंगुली उंगली को पवित्र माना जाता है।
पूजा-पाठ जैसे धार्मिक कार्यों के दौरान अनामिका उंगली में कुशा से बना पवित्र धागे को धारण करने की परंपरा है। जिसके कारण अनामिका उंगली को दिव्य उंगली माना जाता है।
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