श्रीमद्भागवत गीता में लिखी बातों को जीवन उतार लेने से व्यक्ति का जीवन संवर सकता है। आज हम जानेंगे कि सात्विक, राजसिक और तामसिक में क्या होता हैं?
सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों के अनुरूप किसी भी व्यक्ति के आचरण होते है। अक्सर खानपान के लिए सात्विक, राजसिक और तामसिक जैसी शब्दावलियों का उपयोग किया जाता है।
सात्विक आचरण रखने वाले लोग भगवान की पूजा करते है। इस प्रकार के लोगों का उद्देश्य सरलता के साथ सिर्फ और सिर्फ ईश्वर की प्राप्ति होती है।
राजसिक आचरण वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते है। उनका उद्देश्य जीवन में धन-दौलत, सुख और ताकत कमाना होता हैं।
तामसिक आचरण वाले लोग दानव और गलत शक्तियों का आवाहन करते है। इस प्रकार के लोग हमेशा सही रास्ते पर नहीं चलते हैं।
सात्विक व्यक्ति मुख्य रूप से गाय का दूध, मक्खन, बादाम, काजू, किशमिश आदि खाते हैं। जबकि राजसिक लोग कड़वे, खट्टे, नमकीन, गर्म, तीखे खाने का सेवन करते है। वहीं तामसिक लोग मांस मदिरा आदि की ओर आकर्षित रहते है।
गीता के मुताबिक, सात्विक भोजन करने वाले दैवीय शक्तियों के मालिक होते है। वहीं राजसिक और तामसिक भोजन का सेवन करने वाले आसुरी संपत्ति के मालिक होते है।
गीता में लिखी बातों पर धीरे-धीरे अमल करके अपने जीवन को आसान बनाया जा सकता है। सात्विक, राजसिक और तामसिक के बीच के अंतर को खत्म करने की शुरुआत आप सात्विक गुण के साथ कर सकते है।