नवरात्रि में मां-दुर्गा के नौ रूपों के पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। आज हम आपको बताएंगे कील कवच अर्गला स्तोत्र के जाप के महत्व और लाभ के बारे में।
अर्गला स्त्रोत्र के जाप से सभी उपरी बधाएं दूर होती हैं। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले पाठकों को यह पता हैं कि देवी कवच के बाद अर्गला स्त्रोत्र का पाठ करने का विधान है।
पाठ शुरु करने से पहले तिल या सरसों के तेल का दीपक जलाएं और मां चामुण्डा देवी का ध्यान करें। मां के साथ संवाद करें और उन्हें सच्चे मन से पुकारें।
देवी भवानी के शक्तिशाली अर्गला स्त्रोत्र का संकल्प लें और माता के सामने अपनी मनोकामना व्यक्त करें। इस स्त्रोत्र की तांत्रिक नहीं बल्कि वरन मंत्र शक्ति का प्रयोग करें।
इस स्त्रोत्र का अपनी यथा शक्ति के मुताबिक 3 या 7 बार पाठ करें। अर्गला स्त्रत्र के कुछ मंत्र ऐसे भी हैं, जिनको हवन- यज्ञ करते हुए भी वाचन कर सकते है।
माता रानी का यह यज्ञ काले तिल से होगा और इसमें शहद की आहुति दी जाएगी। इस स्तोत्र का पाठ आप बिल्कुल सुबह और मध्य रात्रि में कर सकते है।
इस अर्गला स्तोत्र के पाठ से समस्त कार्यों में विजय प्राप्त होती है। यह स्त्रोत्र रुप, जय और यश देने वाला है। इसका पाठ करने से आपके चारों और सुरक्षा घेरा तैयार हो जाता है।
आपके प्रति द्वेष रखने वाले व्यक्ति और आपसे शत्रुता जैसा व्यवहार करने वाले व्यक्तियों का नाश करने के लिए भी अर्गला स्तोत्र का जाप बेहद लाभकारी माना जाता है।