इतिहासकारों के दर्ज आंकड़े में इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूर्यसेन नामक एक स्थानीय सरदार ने किया जो इस किले से 12 किलोमीटर दूर सिंहोनिया गांव का रहने वाला था।
बलुआ पत्थर ऐसी दृढ़ शिला है जो मुख्यतया बालू के कणों का दबाव पाकर जम जाने से बनती है । बालू के समान इसकी रचना में भी अनेक पदार्थ विभिन्न मात्रा में हो सकते हैं।
मैदानी क्षेत्र से 100 मीटर ऊंचाई पर है। किले की बाहरी दीवार लगभग 2 मील लंबी है और इसकी चौड़ाई 1 किलोमीटर से लेकर 200 मीटर तक है। किले की दीवारें एकदम खड़ी चढ़ाई वाली हैं।
9वीं शताब्दी में राजा मान सिंह तोमर ने मान मंदिर महल का निर्माण करवाया। भिन्न कालखण्डों में इस पर विभिन्न शासकों का नियन्त्रण रहा। गुजरी महल का निर्माण रानी मृगनयनी के लिए कराया गया था।
1779 में सिंधिया कुल के मराठा छत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी। लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया । 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस हासिल किया।
किला और इसकी चाहरदीवारी का बहुत अच्छे तरीके से देखभाल किया जा रहा है. इसमें कई ऐतिहासिक स्मारक, बुद्ध और जैन मंदिर, महल (गुर्जरी महमानसिंह महल, जहांगीर महल, करण महल ) मौजूद हैं।