फाल्गुनी पूर्णिमा पर भद्राव्यापिनी प्रदोषकाल में सबसे पहले राजवाड़ा पर सरकारी होली जलाई गई।
खास बात यह रही कि इस वर्ष पूजन में राज परिवार रिचर्ड होलकर भी शामिल हुए। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग पहुंचे।
होलिका दहन के दृश्यों को जहां नई पीढ़ी ने कैमरे में कैद किया, वहीं पुरानी पीढ़ी ने होली की अग्नि पर गेहूं की बालियां सेंकी और होलिका की परिक्रमा लगाकर सुख-समृद्धि की कामना की।
कई ऐसे लोग भी थे, जो समृद्धि की कामना से राख को अपने साथ छोटी-छोटी पुड़िया में लेकर गए। सरकारी होली की अग्नि भी कई लोग अपने घर होली को जलाने के लिए लेकर गए।
1100 कंडों को व्यवस्थित स्वरूप में एक के ऊपर एक जमाया गया। इसके बाद घास, गन्ना और ऊपर की तरफ चटाई लगाई गई।
होलिका दहन की परंपरा 1728 में होलकर राज्य के संस्थापक सूबेदार मल्हाराव होलकर ने शुरू की थी।
होलकर रियासत में चार बग्घियों में सवार होकर होलकर शासक आते थे। यह पर्व पूरे पांच दिनी मनाया जाता था।
तैयारी एक महीने पहले दांडी पूर्णिमा से शुरू हो जाती थी। दहन के लिए राजवाड़ा चौक को धोकर तैयार किया जाता था।
दहन पर 20 घुड़सवार बंदूकधारियों द्वारा 21-21 राउंड के फायर किए जाते थे। इसके साथ ही पांच तोपों की सलामी भी दी जाती थी।
होलिका जलने के साथ ही शहर में होली की मस्ती शुरू हो गई।