सीढ़ियां बनाते वक्त किसी भी इमारत या भवन में यदि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन किया जाए तो उस स्थान पर रहने वाले सदस्यों के लिए यह कामयाबी एवं सफलता की सीढ़ियां बन सकती हैं।
आज हम आपको बताएंगे कि वास्तु में सीढ़ियों का क्या महत्त्व होता है और इन्हें किस दिशा में कितनी बनानी चाहिए। आइए जानते हैं।
नैऋत्य कोण में पृथ्वी तत्व होने से यहां सीढ़ियां बनाने से इस दिशा का भार बढ़ जाता है, जो वास्तु की दृष्टि में बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिशा में सीढ़ियों का निर्माण सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
दक्षिण या पश्चिम दिशा में इनका निर्माण करवाने से भी कोई हानि नहीं है। अगर जगह का अभाव है तो वायव्य या आग्नेय कोण में भी निर्माण करवाया जा सकता है।
ईशान कोण की बात करें तो इस दिशा को तो वास्तु में हल्का और खुला रखने की बात कही गई है। यहां सीढ़ियां बनवाना अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
जहां तक हो सके गोलाकार सीढ़ियां नहीं बनवानी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो, निर्माण इस प्रकार हो कि चढ़ते समय व्यक्ति दाहिनी तरफ मुड़ता हुआ जाए अर्थात क्लॉकवाइज।
खुली सीढ़ियां वास्तुसम्मत नहीं होतीं अतः इनके ऊपर गुमटी होनी चाहिए। टूटी-फूटी, असुविधाजनक सीढ़ी अशांति तथा गृह क्लेश उत्पन्न करती हैं।
सीढ़ियों के नीचे का स्थान खुला ही रहना चाहिए ऐसा करने से घर के बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहायता मिलती है। सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए जैसे -5, 7, 9 , 11, 15, 17 आदि।
सीढ़ियों के नीचे पितरों का स्थान माना गया है, इसलिए यहाँ कबाड़ एकत्रित करके न रखें अन्यथा ऐसा करने से वहाँ निवास करने वालों को तरह-तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है।