कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव के रूप की आराधना की जाती हैं। आइए जानते है कालाष्टमी पर शुभ मुहूर्त और पूजा महत्व के बारे में।
कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर कालष्टमी मनाई जाती है। इस दिन पूजा-अर्चना और व्रत करने से भैरव बाबा अति प्रसन्न होते है।
उत्तर भारत में जहां कालाष्टमी या कालभैरव जयंती को जहां मार्गशीर्ष माह में महीने में मनाई जाती हैं, दक्षिण भारतीय इसे कार्तिक मास में मनाया जाता हैं।
पंडित चंद्रशेखर के अनुसार, कालाष्टमी व्रत 8 दिसंबर को रखा जाएगा। शिव भक्तों के अनुसार, इस दिन भगवान भैरव रुप में प्रकट हुए थे।
कालाष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण कर लें। काले रंग का वस्त्र पहनकर काल भैरव की मूर्ति के सामने धूप, दीप और अगरबत्ती जलाए।
पूजा में धूप, दीप जलाने के पश्चात दही, बेलपत्र, पंचामृत, धतूरा, पुष्प आदि अर्पित करें। इसके बाद विधिवत रूप से बाबा भैरव की आरती करें और प्रसाद अर्पित करें।
भैरव शब्द ‘भृ’ से बना है, इसका अर्थ ब्रह्मांड को धारण और पोषण करके धारण करता है। राव शब्द का अर्थ आत्म जागरुकता से है। इस शब्द के बारे में शिव महापुराण में मिलता है।
काशी में कालभैरव को ‘काशी का कोतवाल’ भी कहा जाता हैं। काल भैरव को मदिर यानी शराब का भोग भी लगाया जाता है।