कार्तिक मास की चौथ तिथि को आने वाले व्रत को करवा चौथ के नाम से जाना जाता है। सुहागिन महिलाओं के लिए इस व्रत का विशेष महत्व होता है।
शादीशुदा महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद शाम के समय छलनी में दीपक रखकर चांद की पूजा करती हैं। इसके बाद उसी छलनी से चांद को निहारती हैं।
करवा चौथ का व्रत चांद की पूजा किए बगैर अधूरा माना जाता है। चंद्रमा को ब्रह्मा जी का स्वरूप माना जाता है और चंद्रमा को लंबी आयु का आशीर्वाद भी प्राप्त है। इस वजह से चांद की पूजा की जाती है।
छलनी से चांद को देखने के बाद पति का चेहरा देखा जाता है। आज बात कर रहे हैं कि इसके पीछे आखिर कारण क्या है।
धार्मिक मान्यता है कि चांद को देखने के बाद पति का चेहरा देखने से छलनी के सैकड़ों छेदों की तरह ही पति की उम्र भी लंबी होती है।
करवा चौथ व्रत की कथा में उल्लेख है कि एक साहूकार के सात लड़के होते हैं और एक बेटी होती है। सात भाइयों से अपनी बहन को करवा चौथ के दिन भूखा नहीं देखा गया।
कथा के मुताबिक, भाईयों ने अपनी बहन को झूठा चांद दिखाया। इसके बाद उसके पति के प्राण चले गए। इस वजह से भी छलनी से चांद को देखा जाता है, ताकि छल से बचने में मदद मिले।
चांद की पूजा करने के बाद छलनी में दीपक रखकर पति का चेहरा देखा जाता है। इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करने के बाद व्रत को खोला जाता है।