किसी भी पूजा के साथ नवरात्रि में पूजा के लिए नियम होते हैं। यदि इन नियमों का पालन किया जाए तो नवरात्रि में पूजा का मनोवांछित फल मिलता है।
हर पूजा में कलश का विशेष महत्व होता है। कलश में त्रिदेव के साथ रूद्र, सभी नदियों, सागर कोटि-कोटि देवताओं का वाश होता है। इसमें सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा होती है।
कलश को उत्तर-पूर्व दिशा में ईशान कोण में स्थापित करना चाहिए। इस दिशा में जल व ईश्वर का स्थान माना गया है। इसलिए उत्तरपूर्व में कलश स्थापित करने से उचित फल मिलता है।
पूजा स्थल पर जल से भरा हुआ पात्र रखे। स्वास्तिक बनाकर कलावा बांधे। कलश में साबूत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालकर अशोक के पत्ते रखें। एक नारियल उस पर चुनरी में लपेटकर रख दें और कलावा बांधे।
नवरात्रि में देवी की पूजा के लिए सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश स्थापित किया जाता है। इन सभी चीजों को शुभ माना जाता है।
देवी मां का क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण पूर्व दिशा माना गया है इसलिए कि पूजा करते समय साधक का मुख दक्षिण या पूर्व में ही रहे। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से शांति अनुभव होती है।
मातारानी की प्रतिमा व कलश स्थापित करने के बाद पूजा के दौरान दीपक में घी डालकर दीपक जलाएं। एक दीपक पूजा स्थल पर ऐसा रखें जो पूरे नौ दिन तक जलता रहे।