By Manoj Kumar Tiwari2023-02-08, 00:05 ISTnaidunia.com
गरुडपुराण अनुसार
जहाँ जीवन है, वहाँ मृत्यु भी निश्चित हैं-'जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च' जो प्राणी जन्म ग्रहण करता है, उसे समय आनेपर मरना भी पड़ता है और जो मरता है,उसे जन्म लेना पड़ता है।
सनातन धर्म
पुनर्जन्मका यह सिद्धान्त सनातन धर्म की अपनी विशेषता है। जीवन की परिसमाप्ति मृत्यु से होती है।
सत्य
मृत्यु ध्रुव सत्य है इसे सभी ने स्वीकार किया है और यह प्रत्यक्ष भी दिखायी पड़ता है, मृत्यु से मनुष्य की रक्षा करने में औषध,तपश्चर्या,दान और माता-पिता एवं बन्धु-बान्धव आदि कोई भी समर्थ नहीं है।
जीवात्मा
पद्मपुराण अनुसार जीवात्मा इतना सूक्ष्म होता है कि जब वह शरीरसे निकलता है,उस समय कोई भी मनुष्य उसे अपने चर्मचक्षुओंसे देख नहीं सकता।
शरीर धारण
मौत के बाद जीवात्मा अपने कर्मोंके भोगोंको भोगनेके लिये एक अंगुष्ठपर्व परिमित आतिवाहिक सूक्ष्म (अतीन्द्रिय) शरीर धारण करता है जो माता-पिताके शुक्र-शोणितद्वारा बननेवाले शरीरसे भिन्न होता है।
यम की यातना
जीवात्मा अपने द्वारा किये हुए धर्म और अधर्म के परिणाम स्वरूप सुख-दुःखको भोगता है तथा इसी सूक्ष्म शरीर से पाप करने वाले मनुष्य याम्यमार्ग की यातनाएँ भोगते हुए यमराज के पास पहुँचते हैं।
धर्मराज
धार्मिक जन प्रसन्नतापूर्वक सुख भोग करते हुए धर्मराज के पास जाते हैं। केवल मनुष्य ही मृत्यु के पश्चात् सूक्ष्म शरीर धारण करते हैं यम पुरुषों के द्वारा यमराज के पास ले जाया जाता है,अन्य प्राणियोंको नहीं
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