महाभारत के भीषण युद्ध में कई सारे राज खुले थे। कर्ण और पांडवों के बीच रिश्ते का राज भी कुरुक्षेत्र की भूमि पर हुआ था। आइए जानते है पांडवों को कर्ण का राज कब पता चला था?
कर्ण की गिनती महाभारत के सबसे बेहतरीन योद्धाओं में होती है। कर्ण का पालन पोषण एक सूत के घर में हुआ था। महाभारत काल में सूत महारथियों के रथ चलाया करते थे।
राजा पांडू को देवताओं के आशीर्वाद से कुल पांच पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी राजा पांडू के पुत्र थे। इन्हें ही पांडव कहा जाता था।
पांडवों की शिक्षा गुरु द्रोणाचार्य के गुरुकुल में हुई थी। अपनी शिक्षा के दौरान सभी भाई अलग-अलग विद्याओं के ज्ञाता माने जाने लगे। कर्ण ने अपनी शिक्षा गुरु परशुराम से ग्रहण की थी।
अर्जुन और कर्ण के बीच सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनने की जंग लंबे समय तक चली थी। कर्ण भी एक बेहतरीन धनुर्धारी थे, वहीं अर्जुन को भी पूरे विश्व का सबसे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी माना जाता था।
कर्ण को युद्ध भूमि में उसके कर्मों के चलते अर्जुन के हाथों पराजय और मृत्यु का सामना करना पड़ा था। श्री कृष्ण के ज्ञान और गुरु परशुराम के श्राप के चलते कर्ण को अर्जुन के सामने अपने शस्त्रों का त्याग करना पड़ा था।
कर्ण की मृत्यु के बाद जब कुंती युद्ध भूमि में रोते हुए प्रवेश करती है तो पांडव अचंभित हो जाते है और उनसे रोने की वजह पूछते है। पांडवों की माता कुंती उन्हें बताती है, कि कर्ण उनके सबसे बड़े भाई थे।
कर्ण माता कुंती के पुत्र थे। विवाह से पहले माता कुंती को यह सूर्य देव के आशीर्वाद से कर्ण की प्राप्ति हुई थी। विवाह पूर्ण बालक होने के चलते कुंती ने कर्ण को सूप में रखकर नदी में बहा दिया था।