द्रौपदी के चीर-हरण के समय अर्जुन कहां थे?


By Prakhar Pandey21, Jan 2024 06:12 PMnaidunia.com

द्रौपदी का चीर-हरण

द्रौपदी का चीर-हरण महाभारत की सबसे प्रमुख घटनाओं में से एक है। आइए जानते है द्रौपदी के चीर-हरण के समय अर्जुन कहां थे?

महाभारत का युद्ध

महाभारत का युद्ध होने की वजह कौरवों द्वारा द्रौपदी का चीर हरण करना भी था। कौरवों ने द्रौपदी का अपमान करके सबसे बड़ी भूल की थी।

द्वंद में हार

दुर्योधन और युधिष्ठिर के बीच द्वंद का खेल खेला गया था। इस खेल में शकुनि के पासों की वजह से युधिष्ठिर को हार का सामना करना पड़ा था। शकुनि ने अपने छल से दुर्योधन की मदद की थी।

गर्व पर दांव

युधिष्ठिर को यह कहा गया कि वे जिन भी चीजों पर गर्व करते है, उन्हें दांव पर लगाएं। भीष्म पितामह ने खुद इस खेल के नियम बनाए थे। ऐसे में पूरी सभी की आंखों के सामने हो रहे अन्याय पर सब ने अपना मुंह बंद रखा था।

पांडवों पर दांव

अपनी सभी वस्तुओं को दांव पर लगाने के बाद युधिष्ठिर ने अपने चारों भाईयों को भी दांव पर लगा दिया था। दांव में युधिष्ठिर अपने चारों भाई अर्जुन, भीम, नकुल, और सहदेव को हार गए थे। हारने के चलते चारों भाई दुर्योधन के दास बन गए थे।

द्रौपदी पर दांव

धृतराष्ट्र पुत्रों के दबाव और खेल के नियम के चलते युधिष्ठिर ने अपनी धर्मपत्नी द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया था। द्रौपदी से पहले युधिष्ठिर खुद को भी दांव में हार चुके थे।

द्रौपदी का अपमान

जिस समय सभा में द्रौपदी का अपमान हो रहा था, उस समय अर्जुन समेत सभी पांडव दुर्योधन के दास के रूप में सभा में खड़े होकर रो रहे थे। द्रौपदी की लाज खुद भगवान श्री कृष्ण ने बचाई थी।

श्राप का महत्व

जब द्रौपदी कौरवों और सभी में बैठे समस्त लोगों को श्राप देने वाली थी, तो धृतराष्ट्र और माता गांधारी ने उनसे माफी मांग कर उनकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया था। इसी के चलते पांडव दुर्योधन की गुलामी से मुक्त हो पाएं थे।

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