महाभारत की असंख्य कहानियों से आज भी कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। इस कहानी के अनुसार रणभूमि में एक ऐसा समय भी आया था, जब हनुमान जी कर्ण को मारने के लिए दौड़ पड़े थे।
महाभारत के अनुसार, कुरुक्षेत्र के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे। वहीं, हनुमान जी अर्जुन के रथ पर लगे झंडे पर अपने सूक्ष्म रूप में विराजमान थे। द्वापर युग में भी हनुमान कृष्ण के साथ थे।
कर्ण को अर्जुन की तरह ही एक महान योद्धा माना जाता था। दोनों अपने शक्तिशाली अस्त्रों से एक दूसरे पर वार कर रहे थे। कर्ण ने दुर्योधन से मित्रता के कारण अर्जुन को चुना था। दोनों भाई थे और दोनों की मां एक ही थी।
दोनों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। अर्जुन का रथ जब पीछे खिसकता था, तो श्रीकृष्ण के चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी और वे कर्ण की प्रशंसा करने लगते थे। यह देखकर अर्जुन से रहा नहीं गया और उसने कर्ण की प्रशंसा के बारे में पूछा।
श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए अर्जुन से कहा कि हे पार्थ! मैं तुम्हारा सारथी हुं। इस रथ में ध्वज पर स्वयं हनुमान जी विराजमान हैं। पहियों पर शेषनाग यानी बड़े भाई बलराम हैं। तुम्हारे शक्तिशाली होने के बाद भी तुम पीछे जा रहे हो।
कर्ण ने ने जब देखा कि अर्जुन लगातार प्रहार करके भी वे उसका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे हैं, तो उन्होंने एक साथ तीरों की बरसात करने लगा। एक तीर जाकर श्रीकृष्ण की छाती पर मौजूद सुरक्षा कवच से टकराया, तो ये देखकर हनुमान क्रोधित हो गए।
हनुमान जी रथ पर लगे ध्वज से नीचे कूदे और लघु रूप से वास्तविक रूप में आ गए। हनुमान जी को क्रोधित देखकर कर्ण ने धनुष को रथ पर रखा और क्षमा याचना करते हुए हाथ जोड़ा। बाद में श्रीकृष्ण ने उन्हें शांत कराया।
इस लेख में दी गई सभी जानकारियां एक सामान्य मान्यताओं पर आधारित है जिसकी हम अपनी तरफ से कोई भी पुष्टि नहीं करते हैं।