हिंदू धर्म में गोत्र का विशेष महत्व है। रीति-रिवाजों से लेकर पूजा-पाठ या विवाह के समय में गोत्र के बारे में जानकारी मांगी जाती है। आइए जानते हैं कि एक ही गोत्र में विवाह क्यों नहीं करते हैं-
माना जाता है कि एक गोत्र में शादी करने पर दंपती की संतान में आनुवांशिक दोष हो सकते हैं। इससे कई समस्या भी आ सकती है।
हिंदू धर्म में पांच या कम से कम तीन गोत्र छोड़ना पड़ता है। पहला स्वयं का गोत्र, दूसरा माता का गोत्र और तीसरा दादी का गोत्र। इन गोत्र को छोड़कर शादी करने से कोई समस्या नहीं होती है।
ज्योतिषियों का मानना है कि सात पीढ़ियों के बाद गोत्र बदल जाता है। अगर सात पीढ़ियों से एक ही एक गोत्र चल रहा है तो आठवीं पीढ़ी के लिए गोत्र संबंधी विवाह के विषय पर विचार किया जा सकता है।
अगर एक ही गोत्र में विवाह करते हैं तो इससे संतान के ऊपर समस्या बढ़ती है। शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
अलग-अलग गोत्र में शादी करने से होने वाले संतान के अंदर उन दोषों और बीमारियों को नाश करने की क्षमता बढ़ जाती है और बच्चे विवेकशील होते हैं।
लेख में दी गई सभी जानकारियां सामान्य मान्यताओं पर आधारित है जिसकी हम अपनी तरफ से कोई भी पुष्टि नहीं करते हैं।
इन कारणों से एक ही गोत्र में विवाह नहीं करते हैं। एस्ट्रो से जुड़ी ऐसी ही अन्य खबरों के लिए पढ़ते रहें NAIDUNIA.COM