जीवन और मरण इस संसार का शाश्वत सत्य है, जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु एक-न-एक दिन होनी ही है। लेकिन, काशी में मृत्यु को शोक नहीं बल्कि मंगलमय बताया गया है। आइए जानते हैं कि मणिकर्णिका घाट पर शवों का अंतिम संस्कार क्यों किया जाता है-
मणिकर्णिका घाट, जहां सालों से लगातार चिताओ की अग्नि धधक रही है। यहां 24 घंटे मृत शरीरों का अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो यहां अंतिम सांस लेता है, उसे मोक्ष मिलता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार, मां पार्वती का कान का फूल यहां गिर गया था, जिसे महादेव ने ढूंढा था। इस वजह से इसका नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया। इस घाट पर हमेशा चिता जलती रहती है और कभी नहीं भुजती।
मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में महिलाओं को जाने नहीं दिया जाता है, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से श्राप उत्पन्न हो जाएगा।
वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। मृत्यु का जश्न इस तरह मनाया जाता है कि इसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति और मोक्ष के रूप में देखा जाता है।
मणिकर्णिका घाट पर शवों की राख को लोग भभूत के रूप में ले जाते हैं और बाद में इस राख को गंगा नदी में बहा दिया जाता है। इस राख से लोग होली भी खेलते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि जो इंसान काशी में अपने प्राण को त्यागता है, भगवान शिव स्वयं उसके कान में तारक मंत्र बोलते हैं। जिसे जानकर जीवात्मा सीधे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है और इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसलिए मणिकर्णिका घाट पर शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। एस्ट्रो से जुड़ी ऐसी ही अन्य खबरों के लिए पढ़ते रहें NAIDUNIA.COM