जब भी हम कोई पूजा या पाठ करते हैं तो उस दौरान हवन भी किया जाता है जिसमें स्वाहा बोलना अनिवार्य होता है। बिना स्वाहा बोले यह पूरी नहीं मानी जाती है।
एक बार सभी देवी देवता ब्रह्म जी के पास पहुंचे और बताया कि मानव हवन में जो आहुति दे रहे हैं, वह देवताओं तक नहीं पहुंच पा रही है।
उसके बाद ब्रह्मा जी ने भगवान श्री कृष्ण से मदद मांगी। कृष्ण के कहने पर ब्रह्मा ने प्रकृति का ध्यान किया। प्रकृति ने प्रकट होकर ब्रह्मा से वर मांगने को कहा।
ब्रह्मा ने यह बताया कि अग्नि देव अकेले हवन को आहुतियों को भस्म नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए तुम अग्नि देव की दहिकाशक्ति बन जाओ।
ब्रह्मा ने प्रकृति से कहा कि मानव जब मंत्र के अंत में तुम्हारे नाम के उच्चारण के साथ अग्नि में हवन सामग्री डालेंगे तो वह देवताओं तक पहुंच सकेगी।
प्रकृति ने दक्ष प्रजापति के घर स्वाहा के रूप में जन्म लिया। फिर अग्निदेव ने प्रकृति की पूजा की। इसके बाद स्वाहा से अग्नि देव का ब्याह हो गया।
उसके बाद से ही सभी हवन मंत्र के आखिर में स्वाहा का नाम लेकर आहुति देने लगे और देवताओं को हविष्य मिलने लगा। यह सभी हवन में बोला जाने लगा।
इस लेख में दी गई सभी जानकारियां एक सामान्य मान्यताओं पर आधारित है जिसकी हम अपनी तरफ से कोई भी पुष्टि नहीं करते हैं।