जलती होलिका में क्यों भूनी जाती है गेहूं की बालियां
By Manoj Kumar Tiwari2023-02-28, 03:11 ISTnaidunia.com
होलिका कौन थी
होलिका हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यपु नामक दैत्यों की बहन और कश्यप ऋषि और दिति की कन्या थी।
बैकुंठ के द्वारपाल
जय-विजय थे सनक,सनंदन,सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के श्राप से हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यपु नामक दैत्य हुए।
भक्त प्रहलाद की कथा
कयाधु भक्त प्रहलाद की माँ ने अपने पति हिरण्यकश्यपु से होशियारी से विष्णु का नाम जपवा लिया और इसके प्रभाव से ही कयाधु,ने प्रहलाद जैसे विष्णुभक्त को जन्म दिया।
होलिका दहन
हिरण्यकश्यपु अपने पुत्र प्रहलाद को अपने शत्रु विष्णु भक्त जान कर मारने को बड़े-बड़े पर्वत शिखरों से गिराया,पानी में डुबाया,विषपान कराया यहां तक होलिका देवी जलाने आई खुद ही जलकर राख की ढेर हो गई।
होलिका दहन की रात
दैवी शक्तियां जागृत रहती हैं। होलिका की पूजा करने का बाद होलिका दहन करना चाहिए और इसकी सात परिक्रमा करनी चाहिए।
भगवान विष्णु
ने नृसिंह अवतार अवतार लेकर भक्त प्रहलाद की रक्षा की हिरण्यकश्यपु को परमगति दी। भगवान ने कहा जिस कुल में तेरे—जैसा भक्त हो उसकी इक्कीस पीढ़ियां तर जाती है।
गेहूं की सात बालियां
होलिका दहन के समय ताजी और कच्ची गेहूं की बाली अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
परंपरा
सप्तधान्य से आती है सुख-समृद्धि,सात प्रकार के अनाज हो कहते है सप्तधान इसकी आहुति से प्रसन्न होते है पूर्वज पहली फसल से गेहूं बालियां ले आहुति करने से सुख समृद्धि वर्षभर बनी रहती है।
सात ही क्यों
आहुति होली की अग्नि में गेहूं की सात बालियों की आहुति दी जाती है। सात को शुभ माना जाता है। सात वार,सात समुद्र,सात जन्म और विवाह में सात फेरे होते हैं। इस लिए गेहूं की सात बालियां डाली जाती हैं।
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