मॉस्को Russian Sleep Experiment दूसरे विश्व में ऐसी-ऐसी भयावह घटनाएं हुई थी कि उसके खुलासे आज तक हो रहे हैं। इन्हें में से एक है रशियन स्लीप एस्सपरिमेंट, जिसके बारे में जानकारी दूसरे विश्व युद्ध खत्म होने के सालों बाद आई। 2009 की एक रिपोर्ट रुस के इस अमानवीय और वीभत्स परीक्षण को इतिहास में रशियन स्लीप एक्सपरिमेंट के नाम से जाना जाता है। हमने अक्सर सुना है कि पहले विश्वयुद्ध की तुलना में दूसरा विश्वयुद्ध ज्यादा भयावह था क्योंकि इस दौरान जहां खतरनाक हथियार प्रयोग में लाए गए थे, वहीं दूसरे लोग युद्ध बंदियों और कैदियों पर भी कई खतरनाक तरीके के अमानवीय प्रयोग किए गए थे। आज हम आपको एक ऐसे खतरनाक प्रयोग के बारे में बता रहे हैं, जिसमें युद्धबंदियों को सोवियत संघ ने जब लगातार 30 दिन तक सोने नहीं दिया था।

ऐसा था रशियन स्लीप एक्सपरिमेंट

साल 2009 में क्रीपीपास्ता विकि नाम के एक वेबसाइट ने सोवियत संघ द्वारा किए गए इस परीक्षण का खुलासा किया था। वेबसाइट के मुताबिक 1940 में सोवियत संघ ने इस प्रयोग के तहत दुश्मन देश के बंदी बनाए गए पांच कैदियों को चुना था और प्रयोग के तौर पर 30 दिनों के एक कमरे में बंद करके रखा था और लगातार एक माह तक उन्हें सोने नहीं दिया था।

रिपोर्ट के मुताबिक यदि ये पांचों कैदी बिना सोए 30 दिन पूरा कर लेते तो उन्हें रिहा कर दिया जाता, लेकिन प्रयोग के दौरान पांचों कैदियों का अजीबो-गरीब व्यवहार सामने आने लगा। रिपोर्ट के मुताबिक पांचों कैदियों को उनके बंद कमरे में खाने-पीने, पढ़ने के अलावा हर तरह की सुविधाएं दी गई थी, लेकिन सोने या बैठने के लिए कोई व्यवस्था नहीं दी गई थी। कैदियों को नींद ना आए, इसलिए उनके कमरे में एक गैस भी छोड़ी जाती थी, जो उन्हें लगातार जगाए रखती थी।

पांचवें दिन से बदलने लगा कैदियों का व्यवहार

रिपोर्ट के मुताबिक चार दिन तक तो कैदियों का व्यवहार सामान्य था, लेकिन पांचवे दिन से कैदियों का व्यवहार असामान्य होने लगा। नौवें दिन तो एक कैदी का मानसिक संतुलन ही खराब हो गया और घंटों तक चिल्लाते रहता था। वह कैदी इतना चिल्लाया था कि उसके गले का वोकल कार्ड ही फट गया था। कुछ दिनों में सभी कैदियों की हालत एक जैसी हो गई और सभी अपना मानसिक संतुलन खो बैठे। सभी अपने कमरे में से खौफनाक आवाजें निकालने लगे थे। कैदियों ने अपना खाना खाना भी छोड़ दिया।

बाद में शोधकर्ता जब कमरे में दाखिल हुए तो रोंगटे खड़ा कर देने वाले मंजर दिखाई दिया। कमरे में फर्श पर चारों ओर खून पसरा हुआ था और कैदियों के अंग कटे पड़े थे। पांचों कैदी अपने ही शरीर को नोंच-नोंच कर खा रहे थे। जब शोधकर्ता भी इस मंजर तो देखकर घबरा गए तो पांचों कैदियों को बाहर निकाला गया। इस दौरान भी सभी कैदी बहुत जोर से चिल्ला रहे थे। जब कैदियों को ऑपरेशन के लिए मार्फिन के आठ इंजेक्शन लगाए गए तो भी उसका उनपर कोई असर नहीं हुआ। हालांकि ऑपरेशन के दौरान तीन कैदियों की जान चली गई थी और बाकी दो कैदियों को वापस उसी कमरे में बंद कर दिया गया था।

रूस ने ऐसे किसी भी प्रयोग का किया खंडन

ये प्रयोग चूंकि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान युद्धबंदियों पर किए गए थे। तत्कालीन सोवियत संघ के कार्यकाल का खुलासा एक आर्टिकल में 2009 में किया गया था, लेकिन रूस की सरकार ने ऐसे किसी भी परीक्षण से इंकार किया है। कई सालों बाद आज भी रशियन स्लीप एक्सपरिमेंट के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।

Posted By: Sandeep Chourey

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