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डिजिटल डेस्क: शेख हसीना का जीवन त्रासदी, संघर्ष और दृढ़ इच्छाशक्ति का अद्भुत मिश्रण है। 1975 में हुए सैन्य तख्तापलट के दौरान उन्होंने पूरा परिवार खो दिया और इसके बाद उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी। 1981 में देश लौटने के बाद वे अवामी लीग की अध्यक्ष बनीं और आगे चलकर बांग्लादेश की सबसे लंबे समय तक पद संभालने वाली प्रधानमंत्री बनीं। हालांकि, उनके कार्यकाल पर मानवाधिकार उल्लंघन और दमनकारी नीतियों के आरोपों ने कई बार विवाद भी खड़ा किया।
हाल ही में ढाका की एक अदालत ने मानवता के खिलाफ अपराधों के मामले में शेख हसीना को मौत की सजा सुनाई (Sheikh Hasina Death Sentence) है। 78 वर्षीय हसीना वर्तमान में भारत में निर्वासन में हैं और उन्होंने इस फैसले को "नकली मुकदमा" बताते हुए इसे खारिज किया है। अदालत ने कहा कि जुलाई आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों की हत्या और सुरक्षा में विफलता के लिए हसीना को जिम्मेदार माना गया है।

5 अगस्त 2024 को तख्तापलट के बाद हसीना देश छोड़कर भारत आई थीं। उनके खिलाफ कई गंभीर आरोपों पर सुनवाई जारी थी, और अब अदालत ने उन्हें सभी मामलों में दोषी ठहराकर मृत्युदंड दिया है।
पिछले वर्ष हुए छात्र आंदोलन और हिंसा के दौरान हसीना पर प्रदर्शनकारियों की हत्या करवाने का आरोप लगा था। 12 मई को कोर्ट में पेश हुई रिपोर्ट में भी यह दावा किया गया कि हसीना ने ही कठोर कार्रवाई का आदेश दिया था। अदालत ने इन आरोपों को सही माना है।
1975 के सैन्य तख्तापलट के समय हसीना जर्मनी में थीं। उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान, उनकी मां, तीनों भाई और दो भाभियों की घर में हत्या कर दी गई थी। इस नरसंहार में 36 लोग मारे गए थे। इसके बाद हसीना भारत आईं और कई वर्ष यहां रहीं।
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के फैसले के बाद बांग्लादेश ने भारत से हसीना को सौंपने की मांग की है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि मौजूदा प्रत्यर्पण संधि के तहत भारत को उन्हें वापस भेजना चाहिए। बांग्लादेश ने यह भी कहा कि हसीना को शरण देना "अमित्रतापूर्ण कदम" और "न्याय में बाधा" है।
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कानून मंत्रालय के सलाहकार डॉ. आसिफ नजरुल ने कहा है कि बांग्लादेश अब भारत को हसीना के प्रत्यर्पण के लिए एक और औपचारिक पत्र भेजने जा रहा है।
अपने चौथे कार्यकाल के कुछ महीनों बाद उन्होंने आरक्षण को लेकर एक टिप्पणी की, “अगर मुक्तियुद्धा के पोते-पोतियों को लाभ नहीं मिलना चाहिए, तो क्या यह लाभ राजाकारों के पोते-पोतियों को दिया जाए?”
यह बयान व्यापक विरोध का कारण बना। आंदोलन तेज हुआ और दावा किया गया कि सरकार की कड़ी कार्रवाई में 1,000 से अधिक लोग मारे गए। इसके बाद हसीना को भारत भागना पड़ा।
1981 में अवामी लीग की अध्यक्ष बनने के बाद हसीना 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद 2009 में सत्ता में लौटकर 2024 तक देश की सबसे लंबे समय तक पद संभालने वाली नेता बनीं। भारत और बांग्लादेश के रिश्ते उनके दौर में सबसे अच्छे स्तर पर रहे। 2024 में सत्ता परिवर्तन के बाद भारत ने उन्हें शरण दी।
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अदालत ने सजा का क्या आधार बताया?
ढाका की अदालत ने कहा कि शेख हसीना-
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