रायपुर। सरकारी अस्पतालों में दवाओं की किल्लत को लेकर सरकार ने कई बार कहा है कि दवाओं के लिए बजट की कोई कमी नहीं है। ऐसे में यदि समस्या सुधरने का नाम नहीं ले रही है तो इसके लिए कहीं-न-कहीं प्रशासनिक व्यवस्था जिम्मेदार हो सकती है। हाल ही में मेडिकल कालेजों को भेजे गए पत्र स्थिति की गंभीरता को बयां कर रहे हंै।
दरअसल मेडिकल कालेजों को विभाग की तरफ भेजे गए पत्र में दवाओं की उपलब्धता नहीं पूछी गई। पत्र में साफ शब्दों में लिखा गया है कि अस्पतालों में दवाओं की कमी नहीं है। और इस पत्र में कालेज प्रबंधन को सिर्फ हस्ताक्षर करके सहमति देनी है। ऐसी सहमति देने से प्रबंधन भी परेशान नजर आ रहा है। अब इसके पीछे का कारण जो भी हो, लेकिन यह अस्पताल आने वाले उन गरीब मरीजों के साथ मजाक है, जिनकीजिंदगी की डोर इन्हीं दवाओं पर ही टिकी हुई है।
तो रोक दें वेतनवृद्धि
विभाग प्रमुखों ने हाल ही में मेडिकल कालेज के अधिकारियों की बैठक ली। चिकित्सा सेवाओं और कामकाज पर चर्चा के बीच विभागों में मरीजों की सर्जरी बेहद कम होने पर सवाल उठे। कई विभागों में सर्जरी के आंकड़े काफी कम होने की जानकारी मिली। एक विभाग की कार्यशैली पर चिंता जाहिर की गई। चिकित्सा शिक्षा संचालक के मांगे जाने के बाद भी मेडिकल कालेजों द्वारा सर्जरी की रिपोर्ट न देने पर अधिकारी ने नाराजगी जताई। व्यवस्था को देखते हुए काम न करने वाले चिकित्सकों को चिह्नित कर प्रदर्शन खराब होने पर वेतनवृद्धि रोकने की बात कही गई।
इधर शाम को चिकित्सकों के राउंड पर न जाने को लेकर भी अधिकारी ने मेडिकल कालेज प्रबंधन को स्थिति सुधारने की बात कही है। बार-बार शिकायतों के बीच कालेज और अस्पताल प्रबंधन को भी अब गंभीरता दिखानी चाहिए। तमाम गरीब मरीज बड़ी आस लेकर सरकारी अस्पताल आते हैं। उनका ध्यान रखना होगा।
28 लाख की सौदेबाजी ने खोया भरोसा
जिला स्वास्थ्य विभाग में कुछ हो न हो, अनियमितताओं व गड़बड़ी की बातें सुर्खियों में जरूर रहती हैं। इन दिनों 28 लाख रुपये के सौदे की चर्चा विभाग के कर्मचारियों में खूब है। दअरसल शासकीय सेवा से जुड़े एक कर्मचारी ने पहले जिला स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्टाचार से जुड़े दस्तावेज जुटाए। इसमें कई अनियमितताओं की पोल खुल गई। दस्तावेजों के आधार पर वह कर्मी संबंधित वरिष्ठ अधिकारी के समक्ष पहुंचा और मामले को बड़े पैमाने पर उठाने के साथ ही कोर्ट तक ले जाने की बात कही।
चोरी पकड़े जाने के बाद इसे दबाने के लिए सौदेबाजी की गई है। अब जिसने सौदेबाजी कर ली वह तो संतुष्ट है, लेकिन उससे जुड़े लोगों को यह रास नहीं आ रहा है। मामले को उठाना चाहते हैं, ताकि दोषी को सजा दिला सके। इन चर्चाओं में सच्चाई कितनी है, यह तो इससे जुड़े अधिकारी और कर्मचारी ही बेहतर ढंग से जानते होंगे।
पोल खुलने के डर से चाहते हैं सेवानिवृत्ति
चिकित्सा शिक्षा विभाग में एक अधिकारी समय पूर्व सेवानिवृत्ति चाह रहे हैं तो दूसरे अधिकारी अपनी सेवा अवधि को बढ़ाने की जुगत में लगे हैं। दरअसल चिकित्सा शिक्षा से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी बड़े मामलों में घिर गए हैं। उन्हें विभागीय जांच में दोषी पाए जाने का डर बना हुआ है। हालांकि विभाग में अपनी पहुंच का फायदा उठाकर मामले को दबाने में जरूर लगे हैं, लेकिन कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा है।
ऐसे में उन्होंने अब समय पूर्व सेवानिवृत्ति की कोशिश शुरू कर दी है, ताकि पद पर रहते हुए सम्मानजनक तरीके से विदाई हो सके। दूसरे अधिकारी बेहतर पद में बैठे हैं तो कुछ समय और दायित्व निर्वहन करना चाहते हैं, ऐसे में सेवानिवृत्ति के बाद भी उस पर पर बने रहने के लिए अपनी सेवा अवधि बढ़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। खैर आवेदन होगा तो निर्णय विभाग के प्रमुख अधिकारी ही लेंगे।