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कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक का जिला कांग्रेस अध्यक्ष गंगाप्रसाद तिवारी ने किया विरोध
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पत्रकारों से चर्चा करते गंगाप्रसाद तिवारी और अन्य
छिंदवाड़ा। देशभर में 62 करोड़ किसान, मजदूर और 250 से अधिक किसान संगठन कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार सब ऐतराज दरकिनार कर देश को बरगला रहे हैं। उक्त आरोप राजीव भवन में पत्रकारों से चर्चा करते हुए जिला कांग्रेस अध्यक्ष गंगाप्रसाद तिवारी ने लगाए हैं। उन्होंने कहा कि नए कानून से मंडी व्यवस्था पूरी तरह खत्म हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत मिलेगी। बिहार में भी अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। आज बिहार के किसान की हालत बद से बद्तर है। श्री तिवारी ने कहा कि मोदी सरकार का दावा है कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, यह पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है, लेकिन कृषि सेंसस 2015, 16 के मुताबिक देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम है। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी, सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता या बेच सकता है। मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा। इसके अलावा कांग्रेस जिला अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि मंडियां खत्म होते ही अनाज, सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों, करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी। अनाज, सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत, सही वजन व सही बिक्री की गारंटी है। अगर किसान की फसल को मुट्ठी भर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगे, तो फिर मूल्य निर्धारण, एमएसपी, वजन व कीमत की सामूहिक मोल भाव की शक्ति खत्म हो जाएगी। अनाज, सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी। प्रांत मार्केट फीस व ग्रामीण विकास फंड के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं व खेती को प्रोत्साहन देते हैं। इस बिल के माध्यम से किसान को अपनी ही जमीन में मजदूर बना दिया जाएगा। क्या दो से पांच एकड़ भूमि का मालिक गरीब किसान बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ फसल की खरीद फरोख्त का समझौता बनाने, समझने व साइन करने में यह किसान सक्षम नहीं है। ऐसे में अगर विधेयक को वापस नहीं लिया गया तो बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा।