
बिजनेस डेस्क। यह कहानी है उन चार गुजराती दोस्तों की, जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के संकट को अवसर में बदला और एक छोटे से गैरेज से भारत की सबसे बड़ी पेंट कंपनी 'एशियन पेंट्स' की नींव रखी। आज जब पार्टनरशिप में बिजनेस करना एक चुनौती माना जाता है, तब चंपकलाल चोकसी, चिमनलाल चोकसी, सूर्यकांत दानी और अरविंद वकील की यह जुगलबंदी दुनिया के लिए एक मिसाल है।
यह साल 1942 का था, जब पूरी दुनिया दूसरे विश्व युद्ध की आग में जल रही थी। भारत में उस समय विदेशी पेंट कंपनियों का दबदबा था, लेकिन युद्ध के कारण सप्लाई चेन टूट चुकी थी। इसी दौर में मुंबई के चार दोस्तों ने एक सपना देखा स्वदेशी पेंट बनाने का। उन्होंने मुंबई के गाइवाड़ी में एक मामूली से गैरेज से अपना काम शुरू किया।
उस दौर में पेंट केवल बड़े डिब्बों में आता था, जो आम आदमी के लिए महंगा था। एशियन पेंट्स ने इस समस्या को समझा और छोटे पैकेट में किफायती पेंट बेचना शुरू किया। उनकी यह 'कस्टमर-फोकस' सोच रंग लाई और देखते ही देखते यह ब्रांड हर भारतीय घर की पसंद बन गया।
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एशियन पेंट्स की विकास यात्रा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है:
अक्सर कहा जाता है कि पैसा और अधिकार रिश्तों में दरार डाल देते हैं, लेकिन इन चार परिवारों ने दशकों तक एक-दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर काम किया। आज एशियन पेंट्स सिर्फ रंगों का नाम नहीं है, बल्कि यह उस साझेदारी, भरोसे और स्वदेशी संकल्प का प्रतीक है जिसे 80 साल पहले चार दोस्तों ने मुंबई की एक तंग गली में शुरू किया था।