नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। आठ साल लंबे इंतजार के बाद आखिरकार जीएसटी अपीलेट ट्रिब्यूनल के स्थापना की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। मप्र में जीएसटी ट्रिब्यूनल की पीठ की स्थापना से पहले उसके नियम जारी कर दिए गए हैं। मप्र टैक्स लॉ बार एसोसिएशन और कमर्शियल टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के सेमिनार में ट्रिब्यूनल के नियमों पर चर्चा हुई। शुक्रवार को आयोजित कार्यशाला में वक्ताओं ने कहा कि बीते दौर से लेकर मौजूदा प्रकरणों की अपीलों को फाइल करने के लिए अगले वर्ष जून के अंत तक का समय दिया गया है।
कर सलाहकारों के संगठनों द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला में प्रमुख वक्ता अमित दवे ने कहा कि जीएसटी अपीलेट ट्रिब्यूनल के जारी नियमों में निर्देशित किया गया है कि एक अप्रैल 2026 तक के जो भी कर विवाद के प्रकरण हैं, उनकी अपील 30 जून 2026 तक हो सकेगी।
इसके बाद सामान्य नियम प्रचलित रहेगा कि विभाग के आदेश के जारी होने के तीन माह बाद तक अपील दाखिल की जा सकेगी। क्योंकि अब तक ट्रिब्यूनल स्थापित नहीं हुई है इसलिए पुराने प्रकरणों में अपील दाखिल करने के लिए यह प्रारंभिक समय सीमा निर्धारित की गई है।
ट्रिब्यूनल में सभी अपीलें इलेक्ट्रानिक फार्म में दाखिल होंगी। मैन्युअल अपील दाखिल करने पर अनुमति लेना होगी। इसके साथ विभाग के आदेश की सत्यापित प्रति भी सात दिन के अंदर जमा करवानी होगी। अपील करने के लिए यदि विभाग ने आदेश में कोई कर की मांग निकाली है तो उसका तय प्रतिशत भरना होगा, साथ ही एक निश्चित राशि फीस के रूप में अतिरिक्त रूप से भरना होगी। यह राशि सिर्फ रेस्टोरेशन के केस में और रेगुलर अपील के केस में लागू होगी। मप्र के लिए अपील की सुनवाई भोपाल में होगी।
कार्यशाला में कर सलाहकार अंकुर अग्रवाल ने इनवायस मैनेजमेंट सिस्टम में आए बदलावों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सिस्टम बीते साल अक्टूबर से लागू हुआ। अब इसमें बदलाव करते हुए क्रेडिट नोट व डेबिट नोट को लंबित रखने की अनुमति दे दी गई है।
हालांकि करदाता सिर्फ एक तिमाही के लिए इन दस्तावेजों को लंबित रख सकेगा। पहले इस सिस्टम में ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। कार्यशाला का निर्देशन कमर्शियल टैक्स प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष देवेंद्र जैन, टैक्स ला बार के अध्यक्ष अश्विन लखोटिया ने किया।
जीएसटी ट्रिब्यूनल शुरू होते ही उस पर चार लाख अपीलों का बोझ पड़ता दिख रहा है। चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन खंडेलवाल के अनुसार ट्रिब्यूनल स्थापित होने में आठ वर्ष की देरी हुई है। ऐसे में बीत वर्षों के कर प्रकरणों में अपीलें नहीं हो सकी हैं। देशभर में ऐसे विवादित कर प्रकरणों की संख्या करीब चार लाख आंकी जा रही है। पोर्टल की गुणवत्ता और कार्यशीलता पर अपीलों का निराकरण काफी हद तक निर्भर करेगा।
ऐसे में सरकार को सोचना चाहिए कि ट्रिब्यूनल पर एक साथ इतना बोझ डालने के बजाय पुरानी अपीलों के निराकरण के लिए डिस्प्यूट रिजोलुशन स्कीम लाना चाहिए। 20 या 30 प्रतिशत की तय राशि भरकर कर विवाद निराकृत करने की सुविधा दी जाना चाहिए।