अनंगपाल दीक्षित, अंबिकापुर । सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लाॅक के ग्राम कलचा व उसके आसपास रेणुका नदी के किनारे सतमहला नामक स्थान है। इस स्थान पर मंदिर व प्राचीन महलों के अवशेष हैं। इस स्थान की कलाकृति दर्शनीय है। यहां कुछ प्राचीन तालाब भी हैं। कहा जाता है इस स्थान पर किसी प्राचीन राजा का सप्तप्रांगण हुआ करता था। इस कारण से सतमहला नाम दिया गया है। कुछ विद्वानों की मानें तो यह स्थान प्राचीनकाल का गुरुकुल आश्रम है। जहां भगवान परशुराम अपने शिष्यों को अस्त्र-शस्त्र विद्या का अध्ययन कर आते थे। यह स्थान रहस्यमय प्राचीन केंद्र बिंदु भी है।
यह भी कहा जाता है कि भगवान परशुराम के पिता यमदग्नि ऋषि व माता रेणुका यहीं रहा करती थी। यही भगवान परशुराम का जन्म हुआ था किंतु इसका कोई प्रमाणिक तथ्य अभी तक नहीं है पर बहुत सारे लोग इसे मानते आ रहे हैं और इसी स्थल को परशुराम की जन्मस्थली मानते हैं।
वर्ष 1992 में यह स्थल मध्य प्रदेश सरकार से संरक्षित स्मारक घोषित हुआ। यहां पुरातत्व विभाग द्वारा कुछ वर्ष पूर्व उत्खनन भी किया गया। बताया जाता है पांचवीं शताब्दी की कुछ अनुपम कलापूर्ण मूर्तियां एवं एक दुर्लभ प्रतिमा की प्राप्ति भी पुरातत्व विभाग को यहां हुई थी।
20 तालाब का पानी कभी नहीं सूखता
कलचा निवासी नीरज मिश्रा का कहना है कि यहां 20 तालाब हैं, जो कभी भी नहीं सूखते। ये तालाब नान जोबा, झलका मोतिया, बरवाही, तीरही, करोंदा, बड़का, जाम आदि के नाम से जाने जाते हैं। बूढ़ा सागर बावली में उतरने के लिए प्राचीन समय से पत्थर की सीढ़ी बनी हुई है।
सात महल के कारण कहते हैं सतमहला
ग्राम पंचायत कलचा में स्थित सतमहला धाम में चारों ओर दुर्लभ प्रतिमाएं हैं। इसे पुरातत्व विभाग ने सहेजा तो है पर काफी प्रतिमाएं चोरी भी हो गईं। सरगुजा जिले का सतमहला धाम भगवान परशुराम की जन्मस्थली माना जाता है। इस कारण आस्था का केंद्र है।
वर्षो पुराने सतमहला धाम में बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित प्राचीन मंदिर देखने को मिलते हैं। मंदिरों से कुछ दूर एक बड़ा कुआं है, जो कि बूढ़ा सागर तालाब के नाम से प्रचलित है। यहां पर ज्यादातर शिवलिंग के अवशेष देखने को मिलते हैं। इसके अलावा सतमहला परिसर में एक अन्य मंदिर में गंगा, यमुना की मूर्तियां एवं जलधारी में शिव लिंग स्थापित है।
यहां बरइहा देवता की पूजा वर्षो से ग्रामीण करते आ रहे हैं। संभवत: लोग परशुराम को ही बरइहा देवता मानते होंगे। प्राचीन मूर्तियों का संग्रह होने के बाद भी इसके रखरखाव के लिए कोई पहल नहीं की जा रही है। 8 साल पहले नवरात्र के समय यहां से विख्यात बरइहा देवता की मूर्ति की चोरी हो गई थी, जिसका अब तक पता नहीं लग पाया है।
यह है किंवदंति
यह है किवदंती इस स्थल को लेकर ऐसी किवदंती है कि यहां भगवान परशुराम ने जन्म लिया था। उनके पिता ऋषि जमदग्नि की तपोभूमि थी, जहां वे अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे। यहीं आश्रम में परशुराम ने जन्म लिया था। माता रेणुका के कारण ही यहां की नदी का नाम रेणुका पड़ा है। हालांकि इसकी कोई प्रमाणिकता नहीं है पर पुरातन काल से लोग इसे जमदग्नि की तपोभूमि और भगवान परशुराम की जन्मस्थली मान रहे हैं।