नईदुनिया प्रतिनिधि ,अंबिकापुर : हाथी एक सामाजिक प्राणी हैं। दल में साथ रहना हाथियों की आदत है। दल के किसी सदस्य की मौत पर हाथी उस क्षेत्र को छोड़कर जाना नहीं चाहते। ट्रेन से कटकर हाथी के बच्चे की मौत के बाद हावड़ा-मुंबई रेल मार्ग पर हाथियों के आ जाने के कारण कई घण्टे रेल परिचालन बाधित हुआ।
उत्तर छत्तीसगढ़ में कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें यह प्रमाणित हो चुका है कि समूह में रहने वाले हाथी किसी सदस्य की मौत पर उसी क्षेत्र में डेरा जमाए रहते हैं। हाथी के कब्र के पास आकर खड़े रहना, छोटे बच्चे की देखभाल के लिए उसे घेर कर रखे रहना, घायल हाथी को उठाने के लिए सहयोग करना हाथियों के व्यवहार में शामिल है। इतना ही नहीं हाथी के बीमार होने, कुआं अथवा किसी गड्ढे में गिरे हाथी की प्राणरक्षा के लिए इंसानी पहल के लिए समय भी देते हैं। छत्तीसगढ़ में वर्तमान में लगभग 350 हाथी हैं। इनमें से सर्वाधिक हाथी बिलासपुर वन वृत्त में हैं। उत्तर छत्तीसगढ़ भी हाथियों का पसंदीदा स्थल है। वर्ष भर उत्तर छत्तीसगढ़ के जंगलों में हाथियों की उपस्थिति रहती है। समय-समय पर हाथी आबादी क्षेत्रों के आसपास भी विचरण करते हैं। भारतीय वन्य जीव संस्थान के विशेषज्ञों ने स्थानीय वन अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ के हाथियों के व्यवहार पर विस्तृत अध्ययन किया है। अध्ययन में निकलकर सामने आई बातों से स्पष्ट है कि हाथियों का रेलवे ट्रैक के आसपास घण्टो विचरण करना अप्रत्याशित नहीं है। दल के किसी भी हाथी की मौत के बाद हाथी उस क्षेत्र से होकर जल्दी जाना नहीं चाहते।
सकालो की घटना से मिली नई जानकारी
केस -1
अंबिकापुर शहर के नजदीक सकालो गांव में कुछ वर्ष पूर्व कीटनाशक के सेवन से हाथी की मौत हो गई थी। नजदीक के जंगल में हाथी को दफनाया गया था। उसी दिन शाम को हाथियों का दल वहां पहुंच गया था। हाथियों की चिंघाड़ से समूचे क्षेत्र में भय का वातावरण निर्मित हो गया था। सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि तीन से चार दिन तक हाथी उस स्थल पर सारी रात विचरण करते थे।
प्राणरक्षा के लिए इंसानी दखल भी स्वीकार
केस -2
सरगुजा जिले के सीतापुर क्षेत्र के कम गहराई वाले असुरक्षित कुएं में हाथी का बच्चा गिर गया था। सुबह गांव वालों को पता चला। हाथी का बच्चा बाहर नहीं निकल पा रहा था। थोड़ी दूर में बांस के झुरमुट में एक हाथी था। ऐसी स्थिति में हाथी के बच्चे को निकालना खतरा हो सकता था। भय के माहौल के बीच हाथी के बच्चे को निकालने का प्रयास शुरू हुआ तो वयस्क हाथी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। तब एक्सीवेटर बुलाकर कुएं के मुंह को चौड़ा किया गया। आसपास की मिट्टी खोदी गई ताकि हाथी का बच्चा निकल सका। इस अभियान को सफलता भी मिली। कुएं से हाथी का बच्चा निकला तो वयस्क हाथी उसके साथ आगे बढ़ गया यानी वयस्क हाथी को भी यह विश्वास था कि इंसानी दखल उसके बच्चे की प्राणरक्षा के लिए हो रही है।
बीमार हाथियों के उपचार के लिए मिला समय
केस -3
सूरजपुर जिले के ओड़गी क्षेत्र में सात हाथी बेहोश हो गए थे। पशु चिकित्सकों के साथ वन विभाग की टीम जब तक मौके पर पहुंचती चार हाथी खुद खड़े हो गए थे। पशु चिकित्सकों की टीम ने हाथियों का उपचार शुरू किया लेकिन दल के दूसरे हाथियों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। हाथियों का दल नजदीक के जंगल में चला गया था। पूरे दिन उपचार किया गया। शाम होते ही हाथी उस ओर बढ़ने लगे तब टीम वापस लौटी। तब तक उपचार किया जा चुका था।
यह तो उनकी आदत है : डा महेंद्र पांडेय
सूरजपुर जिले के वरिष्ठ पशु चिकित्सक डा महेंद्र पांडेय ने बताया कि हाथियों की यह आदत है कि किसी सदस्य की मौत पर वे आसपास ही विचरण करते हैं। सूरजपुर जिले के बिहारपुर,तमोर पिंगला क्षेत्र में हाथियों के मौत पर जब टीम के साथ हम पहुंचे तो पता चला कि नजदीक ही हाथी हैं। एकाध बार तो सुरक्षागत कारणों से लंबी प्रतीक्षा भी करनी पड़ी।