अंबिकापुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। सामान्य वृक्षों की तुलना में बरगद पांच गुना अधिक आक्सीजन देता है। मानव जीवन में बरगद का अपना अलग महत्व है। इस वट वृक्ष की पूजा पांच पीढ़ियों से लोग करते आ रहे हैं। लोग इसे लगाते हैं तो कुछ भी हो जाए काटते नहीं। अंबिकापुर शहर कभी विरल आबादी का शहर था। शहर के कई ऐसे मोहल्ले थे जहां चंद मकान ही थे। ऐसे समय में लगाए गए बरगद के पौधे आज विशाल रूप ले चुके हैं पर लोग इसका महत्व समझते हैं यही कारण है कि इसकी सुरक्षा हर हाल में करते हैं। वट वृक्ष से ऐसा नाता लोगों का जुड़ा होता है जिनके आंगन व बाड़ी में यदि वट वृक्ष है तो उस पूरे इलाके की पहचान बन जाती है। महिलाएं वट सावित्री की पूजा इसी वटवृक्ष में करती हैं। नगर के राम मंदिर रोड में मंदिलवार परिवार जो आजादी से पूर्व यहां आकर बसा और यहीं का होकर रह गया। इस परिवार के एक बुजुर्ग द्वारिका प्रसाद मंदिलवार ने अपनी बाड़ी में एक बरगद का पौधा लगाया जो अब 100 वर्ष से अधिक का हो चुका है। समय-समय पर इसकी छंटाई होती रही पर इसकी पहचान अब भी बनी हुई है। यहां महिलाएं पीढ़ियों से पूजा करते आ रही हैं। सबको पता है कि धार्मिक मान्यता के साथ आक्सीजन देने वाला यह एकमात्र ऐसा पौधा है जिसके कारण आसपास का वातावरण पूरी तरह शुद्ध रहता है। मंदिलवार परिवार के जिस शख्स ने इस वट वृक्ष को लगाया था उनके पोते विपिन बिहारी मंदिलवार स्वयं 86 वर्ष के हो चुके हैं। इस वट वृक्ष छांव में इनकी चौथी पीढ़ी है। वटवृक्ष की पूजा अर्चना के साथ शुद्ध आक्सीजन ले रही है। वटवृक्ष के आसपास बड़े-बड़े मकान बन गए पर यह वटवृक्ष आज भी सुरक्षित है। मंदिलवार परिवार इस वट वृक्ष की टहनियां गमलों में लगाकर लोगों को पूजा के लिए उपलब्ध कराता है। इस बार इस परिवार की महिलाओं व इस परिवार से जुड़ी अन्य महिलाओं ने संकल्प लिया है कि बांकी नदी के किनारे बरगद का पौधा रोपेंगी ताकि उनकी पीढ़ियां भी शुद्ध आक्सीजन ले सकें और मान्यतानुसार पूजा कर सकें।
बरगद के हैं अनेकों लाभ-
0 सेवानिवृत्ति वन अधिकारी केके बिसेन बताते हैं बरगद के अनेकों लाभ हैं। बरगद की पत्तियों का आकार बड़ा होता है। पत्तियों में हरापन अधिक होने की वजह से यह सामान्य पौधों की तुलना में अधिक आक्सीजन देता है।
0 इसकी जड़ें जमीन की ऊपरी सतह पर भी होती हैं जो बारिश में मिट्टी के कटाव को रोकती हैं। बारिश का पानी बहने के बजाए जमीन के अंदर जाता है। आसपास के इलाकों में जल संरक्षण भी होता है।
0 बरगद की छाल व उसके तने से दूध की तरह निकलने वाले तरल पदार्थ से औषधियां बनती हैं।
0 बरगद के पेड़ के फलों को पक्षियों खाती हैं। यह खाद्य श्रृंखला को बनाए रखने में सहयोग करता है। पक्षियों के कारण ही आसपास के क्षेत्रों में बरगद के अन्य पौधे पनपते हैं।
0 वट वृक्ष की पत्तियां कभी नहीं झड़ती, इसलिए यह पूरे वर्ष आक्सीजन देता है।
मेरे दादा ने लगाया यह बरगद-
सेवानिवृत्त 86 वर्षीय शिक्षक विपिन बिहारी मंदिलवार बताते हैं मेरे दादा स्व.द्वारिका प्रसाद मंदिलवार जिन्हें नाथ बाबू के नाम से लोग जानते थे, उन्होंने मेरे जन्म से पहले ही बरगद का पौधा रोपा था। हम जब बड़े हुए तब यह बड़ा वृक्ष बन चुका था जिसकी छांव में हमारा बचपन बीता है। अब हमारी अगली पीढ़ियां इसी की छांव में हैं। धार्मिक आस्था इस वृक्ष से है। हमारा पूरा मकान इस वृक्ष से ढंका है। इसका कितना फायदा और सुकून हमें मिलता है इसे हम वर्षों से महसूस कर रहे हैं। नई पीढ़ी को मैं आग्रह करना चाहता हूं कि वे जहां भी जगह उपलब्ध हो वहां वट वृक्ष जरूर लगाएं।
कोरोना संक्रमण काल में लोगों को आक्सीजन के लिए जूझते हमने देखा है। लोग जब कृत्रिम आक्सीजन के लिए तरस रहे थे, ऐसे में प्राकृतिक रूप से मिलने वाले आक्सीजन की महत्ता को महसूस किया जा सकता है। वट वृक्ष की हम वर्षों से पूजा करते आ रहे हैं। मैं संकल्प लेती हूं कि 10 जून को वट सावित्री के दिन पूरे परिवार के साथ बांकी नदी तट पर बरगद का पौधा लगाउंगी।
मोनिका मंदिलवार
हम वट वृक्ष की पूजा करते हैं इसलिए हमारा दायित्व है कि हम अपने जीवन काल में कम से कम वट वृक्ष जरूर लगाएं। लोगों को वट वृक्ष लगाने प्रेरित भी करें। इस बार हम बरगद का पौधा जरूर लगाएंगे।
कल्पना सिन्हा
आक्सीजन देने वाले बरगद, पीपल, नीम के पौधे कई जगह काटे भी गए हैं। ऐसे समय में राम मंदिर स्थित यह पुरातन काल का वट वृक्ष अपनी पहचान बनाए हुए है। हम इसे बचाने के साथ वट सावित्री व्रत के दिन बरगद का एक पौधा खाली जगह पर जरूर रोपेंगे।
नीलम सिन्हा
बरगद का वृक्ष हम सबकी आस्था से जुड़ा है। इसलिए इसे बचाना हम सबका दायित्व है। शहर में फैले कई वट वृक्ष नजर आते हैं थे पर अब कम हो गए हैं। शहर के आसपास खाली जगह पर वट वृक्ष लगाना जरूरी है और यह काम हम करेंगे।
सीमा पांडेय
वट सावित्री व्रत रखकर खुद एक बरगद का पौधा मैं लगाउंगी। पौधा लगाकर पूजा करूंगी। बरगद के वृक्षों को पूजने की वर्षों पुरानी परंपरा रही है। यह परंपरा आगे की पीढ़ियों में भी चलती रहे और लोगों को शुद्घ आक्सीजन मिलता रहे। इसके लिए जरूरी है कि हम अपने जीवन काल में एक पौधा रोपें।
दिव्या सिंह
बचपन से हम सुनते आ रहे हैं कि बरगद और पीपल के वृक्षों से सर्वाधिक आक्सीजन मिलता है। यही कारण है कि हमारे लिए यह अहमियत रखता है। धार्मिक आस्था से जुड़े होने के कारण हर किसी के लिए यह वट वृक्ष खास है। हमारा संकल्प है कि हम इस बार एक पौधा बरगद का रोपें।
कल्पना मंदिलवार