
नईदुनिया प्रतिनिधि,अंबिकापुर: नगर के बहुचर्चित प्रीति श्रीवास्तव हत्याकांड को लेकर दिसंबर 1998 में प्रकाशित एक विवादित रिपोर्ट पर लगभग 26 वर्ष बाद अदालत ने एक अखबार के मालिकों और संपादक पर जुर्माना लगाया है। मामले में मध्य प्रदेश के तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार साय को राहत मिली है।
न्यायालय ने फैसले में कहा कि एक दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर में भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार साय के बयान को तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया गया और ऐसी बातें जोड़ दी गईं जिनका उन्होंने उल्लेख नहीं किया था। इस रिपोर्ट के कारण सरगुजा राजपरिवार की प्रतिष्ठा को अनावश्यक क्षति पहुंची, जिससे यह समाचार मानहानि की श्रेणी में आता है।
प्रथम व्यवहार न्यायाधीश पल्लव रघुवंशी ने अपने निर्णय में अखबार के तीन स्वामी, तत्कालीन संपादक, प्रकाशक और मुद्रक को दोषी ठहराते हुए एक रुपये का अर्थदंड देने का आदेश दिया है।
ज्ञात हो कि तीन दिसंबर 1998 को अंबिकापुर के गर्ल्स कॉलेज परिसर में छात्रा प्रीति श्रीवास्तव की जीप चढ़ाकर हत्या कर दी गई थी, जिसने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी। इस घटना के चार दिन बाद आठ दिसंबर को अंबिकापुर के संगम चौक पर आयोजित सभा में तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार साय ने कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार पर सवाल उठाए थे।
अगले दिन उक्त अखबार में प्रकाशित समाचार में यह लिखा गया कि इस जघन्य हत्या के आरोपी सरगुजा राजपरिवार के रिश्तेदार हैं और पैलेस के दबाव में जांच को प्रभावित किया जा रहा है। खबर में यह भी जोड़ा गया कि यदि जांच गहराई से की गई तो कई हत्याकांड और उजागर होंगे। मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार आने के बाद सामंती प्रवृत्तियां सक्रिय हो गई हैं।
इन कथनों को आधार बनाकर सरगुजा राजपरिवार की ओर से अदालत में मानहानि का दावा दायर किया गया था। सुनवाई के दौरान नंदकुमार साय ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने सरगुजा राजपरिवार या महाराज एमएस सिंहदेव के विरुद्ध कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की थी और समाचार पत्र ने उनके भाषण को अपने स्तर पर बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि यदि उन्होंने ऐसा कुछ कहा होता तो अन्य अखबारों और समाचार माध्यमों में भी वह अवश्य दिखाई देता, जबकि ऐसा नहीं हुआ। इससे स्पष्ट है कि प्रकाशित रिपोर्ट में तथ्यात्मक छेड़छाड़ की गई। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि समाचार पत्र ने भाजपा अध्यक्ष के कथनों को बढ़ाया-घटाया तथा टिप्पणी में ऐसे तत्व जोड़े जिन्हें बोलने का कोई प्रमाण नहीं था। इस प्रकार समाचार प्रस्तुत करने से सरगुजा राजपरिवार की छवि धूमिल हुई और यह मानहानि का स्पष्ट मामला है।
तीन दशक बाद आया फैसला
लगभग तीन दशक बाद आया यह फैसला सरगुजा राजपरिवार के लिए महत्वपूर्ण जीत माना जा रहा है। राजपरिवार के मुखिया और पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के लिए भी यह निर्णय राजनीतिक और व्यक्तिगत स्तर पर बड़ी राहत लेकर आया है। यह फैसला उस दौर की राजनीतिक बयानबाज़ी तथा पत्रकारिता की जिम्मेदारी पर एक गंभीर टिप्पणी के रूप में देखा जा रहा है।