नईदुनिया प्रतिनिधि, अंबिकापुर : छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों की संख्या 300 से 350 है। इनमें से 60 से 70 हाथियों को यदि एक निश्चित वन क्षेत्र में रोकने में सफलता मिली है तो यह जंगली हाथियों के प्रबंधन के लिए शुभ संकेत है। उत्तर छत्तीसगढ़ के तमोर पिंगला अभयारण्य प्रबंधन ने जंगली हाथियों को रोक कर रखने में सफलता पा ली है। अभयारण्य क्षेत्र में वर्षभर बड़ी संख्या में जंगली हाथियों की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि उन्हें यहां पर्याप्त चारा - पानी मिल रहा है। पसंदीदा आहार के लिए भी उन्हें जंगल से बाहर आबादी क्षेत्रों की ओर जाने की जरूरत नहीं पड़ रही है। यह अलग बात है कि कभी-कभी हाथी विचरण करते-करते अभयारण्य क्षेत्र के गांवों के आसपास पहुंच जाते हैं लेकिन नुकसान मैदानी क्षेत्र के अनुरूप नहीं पहुंचाते।
तमोर पिंगला अभयारण्य क्षेत्र में किसी एक सीजन या दो-चार महीने के लिए हाथी नहीं रुकते। पिछले तीन - चार वर्षों से जंगली हाथियों ने तमोर पिंगला अभयारण्य क्षेत्र को अपना सुरक्षित ठिकाना बना लिया है। यहां हाथियों को पर्याप्त मात्रा में चारा-पानी तो मिलता ही है वे खुद को सुरक्षित भी महसूस करते हैं। यह सब कुछ इन्हें आबादी क्षेत्रों में भी इतनी आसानी से नहीं मिल सकता। तमोर पिंगला अभयारण्य क्षेत्र में जंगली हाथियों के प्रबंधन के लिए जो नवाचार हुए हैं उसका अनुपालन छत्तीसगढ़ के दूसरे वन क्षेत्रों में भी किया जा सकता है। इससे पूरी संभावना है कि हाथियों जो जंगल में ही रोक कर रखने में मदद मिलेगी। हाथी यदि जंगलों में ही रहेंगे तो हाथी-मानव द्वंद को भी आसानी से नियंत्रित किया जा सकेगा।
हाथियों को चारा - पानी मिला तो नहीं निकलते जंगल से
भारतीय वन्य जीव संस्थान ने उत्तर छत्तीसगढ़ के जंगली हाथियों के व्यवहार पर अध्ययन किया है। यह अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि यदि जंगली हाथियों को जंगल में ही पर्याप्त मात्रा में चारा और पानी मिल जाए तो वे आबादी क्षेत्रों की ओर रूख नहीं करेंगे। जंगली हाथियों को नहाना पसंद है। तालाब , डबरी आदि में हाथियों को मौज मस्ती करते मैदानी वन कर्मचारियों ने कई बार देखा भी है। इसके साथ ही उन्हें पसंदीदा आहार मिल जाए तो फिर वे जंगल से बाहर निकलेंगे ही नहीं। ऐसे भी उत्तर छत्तीसगढ़ में देखा गया है कि छोटे से जंगल में ही जंगली हाथी पूरा दिन गुजार देते हैं। शाम ढलने के बाद ही वे आबादी क्षेत्रों के आसपास पहुंचते हैं। यदि जंगल में ही चारा मिल गया तो उन्हें बाहर निकलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
इन उपायों से हाथियों को अभयारण्य क्षेत्र में ही रोकने में मिली सफलता
अभयारण्य क्षेत्र में मिश्रित प्रजाति के पौधे और घास का चारागाह विकसित किया गया है। यहां झिंगन,मोयन,गलगला, तेंदू के अलावा बांस की विभिन्न प्रजाति का रोपण किया गया है। इसके अलावा छोटी कांदी, बड़ी कांदी तथा लाटा, थोड़ प्रजाति के घास का चारागाह विकसित किया गया है। घास के बीज का संग्रहण कर अभयारण्य प्रबंधन द्वारा अलग - अलग क्षेत्र में इसका छिड़काव किया जाता है। ये कोमल घास हाथियों को बेहद पसंद है। प्राकृतिक रूप से उगने वाले घास का संरक्षण भी किया गया है।नरवा विकास कार्यक्रम के तहत यहां बारहमासी नालों को बोरों में रेत भरकर रोका जाता है। छोटे - छोटे चेकडेम बनाए गए है। इसके अलावा पिंगला नदी के पानी का उपयोग भी हाथियों के लिए किया जा रहा है। अभयारण्य क्षेत्र में स्टाप डेम, बांध और तालाबों का भी निर्माण किया गया है। इनमें वर्षभर पानी रहता है।
विरल आबादी से सुरक्षित महसूस करते हैं हाथी
तमोर पिंगला अभयारण्य क्षेत्र में आबादी विरल है। अंदर ही अंदर यह जंगल गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान से जुड़ जाता है। जंगल के भीतर हाथी खुद को सुरक्षित भी महसूस करते हैं। उन्हें विचरण के लिए लंबा चौड़ा क्षेत्र मिल जाता है। ग्रामीणों की ओर से भी वन विभाग को सहयोग मिलता है। अभयारण्य क्षेत्र होने के कारण जंगलों में ग्रामीणों की दखल कम है। हाथियों की उपस्थिति की नियमित रूप से जानकारी भी प्रेषित की जाती है। इंसानी दखल नहीं होने से हाथी - मानव द्वंद को नियंत्रित करने में भी बड़ी सफलता मिली है। हाथियों की गिनती नहीं हो पाती है फिर भी 60 से 70 हाथी यहां वर्षभर रहते हैं।
यह भी जानिए
0 कुल 608 वर्ग किलोमीटर का है तमोर पिंगला अभयारण्य
0 अभयारण्य क्षेत्र में कुल गांव की संख्या 24 है।
0 इन गांवों में निवासरत परिवारों की संख्या लगभग 3500 है।
0 बलरामपुर व कोरिया जिले से लगा हुआ है सूरजपुर जिले का तमोर पिंगला अभयारण्य।
इनका कहना
अभयारण्य क्षेत्र में चारा - पानी की पर्याप्त उपलब्धता से हाथियों की उपस्थिति वर्ष भर रहती है। हाथियों के पसंदीदा आहार में शामिल मिश्रित प्रजाति के पौधे और घास यहां हाथियों के लिए उपलब्ध है। पानी के लिए चेकडेम ,स्टाप डेम , तालाब हैं। बोरियों में रेत भरकर बारहमासी नालों का पानी संग्रहण कर हाथियों के लिए उपलब्ध कराया गया है।अभयारण्य क्षेत्र में ही हाथियों को चारा - पानी मिल जाता है।
शैलेंद्र कुमार अंबष्ट
अधीक्षक , तमोर पिंगला अभयारण्य