सरसींवा। श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी रूपमणी का विवाह संसार को भक्ति का संदेश देता है। इनका विवाह आदर्श का प्रतीक है। भगवान की जो भक्ति करते हैं प्रभु उनके सभी दुख दूर करते हैं। भगवान का विवाह पति पत्नी में अटूट प्रेम का संदेश देता है पर आज पति पत्नी के बीच सिर्फ भोग विलास बन गया है। भगवान ने कृष्ण अवतार में जहां एक तरफ गोपियों के चीर चुलाकर उन्हें भक्ति और प्रेम की शिक्षा दी वहीं प्रभु ने द्रोपदी का चीर बढ़ाकर उसकी लाज रखी। आज धर्म के मार्ग पर चलने का समय आ गया है हम जब तक धर्म के मार्ग पर नहीं चलेंगे तब तक हमारा मोक्ष उद्घार नहीं है।
सिलयारी धाम से पहुंचे पं. नरेंद्र नयन शास्त्री चाय वाले बाबा ने श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का प्रसंग सुनाया। कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के साथ हमेशा देवी राधा का नाम आता है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं में यह दिखाया भी था कि श्रीराधा और वह दो नहीं बल्कि एक हैं। लेकिन देवी राधा के साथ श्रीकृष्ण का लौकिक विवाह नहीं हो पाया। देवी राधा के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय देवी रुक्मणी हुईं। देवी रुक्मणी और श्रीकृष्ण के बीच प्रेम कैसे हुआ इसकी बड़ी अनोखी कहानी है। इसी कहानी से प्रेम की नई परंपरा की शुरुआत भी हुई। देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी अपनी बुद्घिमता, सौंदर्य और न्यायप्रिय व्यवहार के लिए प्रसिद्घ थीं।उसमें लक्ष्मी के समान ही दिव्य लक्षण थे। अतः लोग उसे 'लक्ष्मीस्वरूपा' कहा करते थे। रुक्मिणी जब विवाह योग्य हो गई तो भीष्मक को उसके विवाह की चिंता हुई। रुक्मिणी के पास जो लोग आते-जाते थे, वे श्रीकृष्ण की प्रशंसा किया करते थे। वे रुकमणी से कहा करते थे, श्रीकृष्ण अलौकिक पुरुष हैं। इस तरह रुक्मिणी का पूरा बचपन श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। इस समय संपूर्ण विश्व में उनके सदृश अन्य कोई पुरुष नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुकमणी ने मन ही मन निश्चय किया कि वह श्रीकृष्ण को छोड़कर किसी को भी पति रूप में वरण नहीं करेगी। रुकमणी के भाई उनकी शादी शिशुपाल से करना चाहते थे लेकिन वे भगवान श्रीकृष्ण को पतिरूप में स्वीकार कर चुकीं थीं। भगवान श्रीकृष्ण एवं रूपमणी के विवाह की रोचक कहानी है । श्रीकृष्ण रूपमणी को हरण करके ले गए थे । फिर जाकर विवाह किए थे ।
श्री दिव्य परिवार द्वारा 11 जोड़ी का सामूहिक विवाह विधि विधान से पंडितों द्वारा करवाया गया। दूह्लों का बैंड बाजे एवं आतिशबाजी के साथ बारात भी निकाली गई। दिव्य परिवार द्वारा नव दम्पत्ति को भेंट स्वरूप उपहार सामग्री भी दिया गया।