नईदुनिया न्यूज़, बालोद: जुड़वां बच्चों की कहानियां आमतौर पर फिल्मों में देखने को मिलती हैं, लेकिन बालोद जिले का बोहारडीह गांव इन दिनों एक अनोखे संयोग को लेकर चर्चा में है। यहां के एक ही स्कूल में एक-दो नहीं, पूरे चार जुड़वां जोड़े पढ़ाई कर रहे हैं। ये बच्चे न सिर्फ एक जैसी शक्ल-सूरत से सबका ध्यान खींचते हैं, बल्कि अपनी पढ़ाई, अनुशासन और हुनर से भी गांव का नाम रोशन कर रहे हैं।
इन बच्चों में हैं नूतेश-नूतांश, वेदिका-वेदांशी, डेनिशा-डेलिशा और नीला-नीलिमा। कोई आंगनबाड़ी में है तो कोई पहली कक्षा में, वहीं दो बच्चे अब हायर सेकेंडरी तक पहुंच चुके हैं। उम्र में भले फर्क हो, लेकिन सोच और संकल्प में समानता साफ झलकती है। सभी बच्चे शिक्षा के प्रति गंभीर हैं और स्कूल में अनुशासन के लिए मिसाल माने जाते हैं।
शिक्षकों का कहना है कि चारों जुड़वां जोड़ों ने स्कूल का माहौल बदल दिया है। वे कहते हैं कि बच्चों के चेहरों में समानता जरूर है, लेकिन स्वभाव में हर एक की अलग पहचान है – कोई शांत है, कोई चंचल, तो कोई बेहद जिज्ञासु। शिक्षिका साधना नेताम बताती हैं, 'इन बच्चों ने हमारी कक्षाओं को रोचक बना दिया है। इनसे बाकी बच्चों को भी प्रेरणा मिलती है।'
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता रत्नाबाई यादव का कहना है कि इन जुड़वां बच्चों की देखभाल और प्रगति पर खास ध्यान दिया जाता है। सभी बच्चों में सीखने की ललक है।"गांव के लोगों के लिए भी ये बच्चे अब गांव की शान बन चुके हैं। उपसरपंच तारा मंडावी कहती हैं, हमारे गांव में योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन हुआ है और इन बच्चों को इसका पूरा लाभ मिल रहा है। वे गर्व से शासकीय स्कूलों में पढ़ रहे हैं और बाकी बच्चों के लिए आदर्श भी बन रहे हैं।
गिरवर श्याम, जो गांव के बुजुर्गों में गिने जाते हैं, कहते हैं हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे छोटे से गांव में जुड़वां बच्चों की ऐसी कतार दिखेगी। ये संयोग अपने आप में एक कहानी है।बोहारडीह गांव आज शिक्षा, अनुशासन और समानता के इस अनोखे संगम के लिए पहचाना जा रहा है। चार जोड़ी जुड़वां बच्चों की यह कहानी न सिर्फ आकर्षक है, बल्कि यह बताती है कि ग्रामीण भारत में भी कितनी संभावनाएं और प्रेरणाएं छिपी हुई हैं।