बालोद। घर के आंगन में सुबह की धूप के साथ ही चहचहाती और दाने चुगती एक छोटी सी चिड़िया गौरैया न जाने कहां खो गई है। सीमेंट के घरों में यह काफी कम दिखाई देती है। विशेषज्ञों के मुताबिक गौरैया की कम होती संख्या की बड़ी वजह खेतों में तेजी से और बड़ी मात्रा में उपयोग किया जा रहा फर्टिलाइजर है। फसल की बुआई से लेकर कटाई तक में किसान खेत में फर्टिलाइजर डाल रहे हैं।
जब इससे प्रभावित बीज या दाने गौरैया चुगती है तो उसका असर अंडे तक होता है। अंडे का कवच कमजोर होकर कुछ दिन बाद टूट जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गौरैया ही एक ऐसी चिड़िया है, जो पर्यावरण प्रदूषण का संकेतक भी है। वातावरण के बढ़ते तापमान और घटते पेड़-पौधों की वजह से इनकी संख्या में कमी आ रही है। नदी और तालाबों का गंदा पानी पीते ही गौरैया के शरीर में टॉक्सीन बन जाते हैं। इससे इनके अंडों के बचे रहने की क्षमता कम हो जाती है।
फल की पौष्टिकता और फूल की सुंदरता बढ़ाती है गौरैया
पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि गौरैया की संख्या बढ़नी चाहिए। ये वातावरण को ठीक करने में भी सहयोग करती हैं। ये पराग कणों को एक जगह से दूसरी जगह, दूसरे पौधों-पेड़ों तक पहुंचाती हैं, जिससे फल में पौष्टिकता और फूल में सुंदरता बढ़ती है। तेजी से बढ़ती मोबाइल टॉवर की तरंगों से भी इन्हें नुकसान पहुँच रहा है। इनका नर्वस सिस्टम प्रभावित हो रहा है।
घरों में घोंसले की जगह छोड़ बचाई जा सकती है चिड़िया
विशेषज्ञों के मुताबिक आधुनिक घरों में गौरैया को घोंसला बनाने की जगह नहीं मिलती, साथ ही पीने के लिए पानी मिलना भी मुश्किल होता है। इन्हीं वजहों से गौरैया का दिखाई देना कम हो गया है। घर बनवाते समय पक्षियों के बैठने या घोंसले बनाने की जगह छोड़ी जा सकती है। छतों पर पानी से भरे बर्तन रखे जा सकते हैं। छतों पर दाने भी बिखेरे जा सकते हैं, ताकि गौरैया उन्हें चुग सके।