दल्लीराजहरा/डौंडी (नईदुनिया न्यूज)। दल्लीराजहरा की मेनरोड पर अनफिट वाहन मौत बनकर दौड़ रही है। अनफिट वाहनों की तादाद दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। पुलिस व परिवहन विभाग लगातार कार्रवाई करने का दावा कर रहा है, लेकिन आज भी कई वाहनों की जांच नहीं हो पाई है। दल्लीराजहरा की सड़कों पर अनफिट वाहन फर्राटे भरने लगे हैं। दल्लीराजहरा शहर में हजारों वाहन फिटनेस का मानक पूरा नहीं करते हैं। सड़कों पर दौड़ रही अनफिट वाहनों में सबसे ज्यादा संख्या ट्रैक्टर-ट्राली, निजी बस, मालवाहक की है।
परिवहन विभाग की तमात कोशिशों के बाद भी सड़कों पर अनफिट वाहन धड़ल्ले से फर्राटे भर रहे हैं। गत दो वर्ष से वाहनों की जांच नहीं हो पाई है, जिसका फायदा वाहन चालक उठा रहे हैं। अनफिट वाहनों के चलते दल्लीराजहरा शहर में आए दिन सड़क दुर्घटनाएं हो रही है। कइयों की जान भी जा चुकी है। इसके बावजूद सड़कों पर खटारा वाहन बेखौफ दौड़ रहे हैं। विभागीय अफसर लगातार जांच कर कार्रवाई करने का दावा कर रहे हैं। लेकिन अफसरों का दावा पूरी तरह से उलट है।
उपकरणों की कमी से जूझ रहा विभाग
अनफिट वाहनों की जांच नहीं होने के कारण वाहन मालिकों की चांदी हो गई है। वाहन मालिक बेखौफ सड़कों पर खटारा वाहनों को दौड़ा रहे हैं। कई वाहनों में न एंडीकेटर लाइट है और न ही पीछे हिस्से में रेडियम पट्टी। कई वाहनों के नंबर भी गायब हैं। इधर परिवहन विभाग फिटनेस उपकरणों से भी जूझता नजर आ रहा है। विभाग के पास पर्याप्त संख्या में रोलर ब्रेक टेस्टर, हेड लैंप टेस्टर, स्पीडोमीटर, स्पीड गवर्नर टेस्टर, स्मोक मीटर व अन्य उपकरण होना चाहिए। लेकिन विभाग के पास अधिकतर उपकरण नहीं हैं। जिसके चलते वाहनों की जांच करने के लिए कर्मचारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
कई वर्षों से नहीं हुई जांच
हर दो वर्षों में वाहनों की फिटनेस जांच की जाती है। इसके बाद विभाग द्वारा मौके पर फिटनेस प्रमाण पत्र दिया जाता है। लेकिन कई वर्षों से खटारा वाहनों की जांच नहीं हो पाई है। शहर जैन भवन चौक, गुप्ता चौक, मेनरोड रोड, चिखलाकसा रोड में सैकड़ों की संख्या में डंपर, ट्रैक्टर-ट्राली, ट्रक ऐसे दौड़ रहे हैं, जिनकी फिटनेस वर्षों से नहीं जांची गई है। अधिकतर वाहनों में बैक लाइट, टेल लाइट, रेट्रो टेप नदारद हैं।सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण अनफिट वाहन हैं। किसी भी सड़क से गुजर जाए तो गहरा काला धुंआ छोड़ते वाहन मिल जाएंगे। यह प्रदूषण तो फैलाते ही हैं, साथ ही कई बार दुर्घटना का कारण भी बनते हैं।
फिटनेस सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य
केंद्रीय मोटर वाहन नियमावली-1989 के नियम-62 के अनुसार प्रत्येक ट्रांसपोर्ट वाहन के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य है। सर्टिफिकेट न होने की स्थिति में जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन यथार्थ में इन नियमों का शायद ही पालन होता है। एआरटीओ कार्यालय, ट्रांसपोर्टरों और बिचौलियों की मिलीभगत के कारण ज्यादातर कामर्शियल वाहन स्वामी ले-देकर बिना समुचित जांच के ही फिटनेस सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेते हैं।
निभाई जाती औपचारिकता
नियमानुसार वाहन की फिटनेस जांचने के लिए एआरटीओ के पास कम से कम टेस्ट ट्रैक होना चाहिए, ताकि वाहन की रफ्तार व ब्रेक लगने की स्थिति की जानकारी हो सके। एआरटीओ कार्यालय में ट्रैक नहीं है, जिससे वाहन की स्पीड की जांच की जा सके। एआरटीओ कर्मचारी वाहन को खड़ी हालत में स्टार्ट कर आंखों और कानों के सहारे फिटनेस जांच की औपचारिकता निभाते हैं। इससे हेडलाइट्स, ब्लिकर लाइट्स, फॉग लाइट्स, टायर, रिम जैसी ऊपरी चीजों की पड़ताल तो हो जाती है, लेकिन क्लच, गियर जैसे भीतरी पुर्जो की हालत का पता नहीं चल पाता।
व्यवसायिक वाहनों की फिटनेस जांच
एआरटीओ कार्यालय में व्यावसायिक व बड़े वाहनों की फिटनेस जांच की आधी-अधूरी व्यवस्था है, जबकि छोटे वाहनों जैसे साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल, तांगा, बुग्गी, रिक्शा, इत्यादि की फिटनेस नहीं होती।
ट्रैक्टर-ट्राली व जुगाड़ वाहनों का रजिस्ट्रेशन नहीं
एआरटीओ कार्यालय में सभी ट्रैक्टर, ट्रालियों का पंजीकरण कराना अनिवार्य है। कार्यालय के आंकड़ों में कामर्शियल के रूप में 10 हजार से अधिक ट्रैक्टर-ट्राली पंजीकृत है। वहीं दल्लीराजहरा शहर से गांव तक ट्रैक्टर व ट्रालियों की संख्या 50 हजार से भी अधिक है। वाहन स्वामी इनका पंजीकरण भी नहीं कराते। अधिकतर ट्रैक्टर-ट्रालियां बिना रजिस्ट्रेशन फर्राटा भर रही है, जो दुर्घटना का कारण बनती है।