नईदुनिया प्रतिनिधि, अंबिकापुर: बलरामपुर जिले के ग्राम सिंगचौरा के नवाचारी उन्नतशील कृषक रामेश्वर तिवारी ने सुगंधित विष्णुभोग धान की नई किस्म विकसित की है। कृषक रामेश्वर के नाम पर इस किस्म का पंजीयन पौधा किस्म व संरक्षण और कृषक अधिकार अधिनियम के तहत किया गया है। रामेश्वर विष्णु भोग के ब्रांडिंग और मार्केटिंग का अधिकार कृषक रामेश्वर तिवारी को अगले छह वर्षों के लिए प्रदान किया गया है।
दरअसल उत्तर छत्तीसगढ़ में विष्णुभोग सुगंधित धान विलुप्ति की कगार पर है। हाईब्रीड के जमाने में कम उत्पादन के कारण किसान विष्णुभोग की खेती से दूर हो चुके हैं। बेहद कम रकबे में इसकी खेती की जाती है। उनमें कृषक रामेश्वर तिवारी भी शामिल हैं।
सरगुजांचल में विष्णुभोग की जो प्रजाति थी, उसमें पौधों की ऊंचाई अत्यधिक हो जाती थी। हवाएं चलने से पौधे खेत में ही गिर जाते थे और उत्पादन नहीं के बराबर होता था। किसानों के समक्ष यह बड़ी समस्या थी। कृषक रामेश्वर तिवारी ने इस समस्या के निराकरण के लिए विष्णुभोग धान के ऐसे पौधों के बीजों का संरक्षण किया जिनकी ऊंचाई कम थी। उन्होंने इस बीज से विष्णुभोग धान की खेती की। पौधों की ऊंचाई, उत्पादन और सुगंध अलग था।
उन्होंने इंदिरा गांधी कृषि विश्विद्यालय रायपुर के पौध प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग के प्रमुख विज्ञानी डॉ. दीपक शर्मा के अलावा वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. अरुण त्रिपाठी के मार्गदर्शन में इस किस्म के पंजीयन के लिए पहल की। भारत सरकार के पौध किस्म संरक्षण और कृषक अधिकार प्राधिकरण ने रामेश्वर तिवारी के नाम पर विष्णुभोग का पंजीयन किया है। इससे सुगंधित किस्म की विष्णुभोग धान की खेती को नए सिरे से बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
इस किस्म के चावल में मिठास अधिक है। सामान्य विष्णुभोग के समान ही इसमें भी सुगंध हैं। प्रति एकड़ औसतन 15 क्विंटल उत्पादन होता है। यह हाईब्रीड किस्म की धान की तुलना में ज्यादा सहनशील होता है। प्रतिकूल मौसम में तत्काल पौधों में कोई फर्क नहीं पड़ता है। रामेश्वर विष्णुभोग के धान के पौधों की ऊंचाई कम होती है। तेज हवाओं में भी पौधे खेतों में नहीं गिरते हैं।कम पानी में भी इसकी खेती हो जाती है। उत्पादन पर असर नहीं पड़ता है।
हाईब्रीड धान की खेती में उत्पादन तो अधिक होता है लेकिन सुगंधित धान की तुलना में दर कम होता है। रामेश्वर विष्णुभोग की खेती किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकती है। हाईब्रीड धान प्रति एकड़ में 25 से 30 क्विंटल होता है। प्रति किलो अधिकतम यह 31 रुपये (समर्थन मूल्य) में खरीदा जाता है। इसकी तुलना में रामेश्वर विष्णुभोग प्रति एकड़ में 15 क्विंटल उत्पादित होता है लेकिन प्रति किलो यह 70 रूपये में बिकता है। इस लिहाज से रामेश्वर विष्णुभोग की खेती में प्रति एकड़ औसतन एक लाख पांच हजार का धान होता है वहीं हाईब्रीड किस्म की धान की खेती में अधिकतम 93 हजार का धान होता है।
फसलों के नई किस्म के पंजीयन से संबंधित किसान को सीधा फायदा होता है। उत्पादन, विक्रय, विपणन, वितरण, आयात या निर्यात करने और ऐसा करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को प्राधिकृत करने का अधिकार होगा होता है। विष्णुभोग की नई किस्म का उत्पादन और ब्रांडिंग कर कृषक रामेश्वर तिवारी बिक्री कर सकेंगे।कोई संस्था या कंपनी इनके साथ मिलकर काम करेगी तो इसके बदले कृषक को भी लाभांश मिलेगा।
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तीन फसलों की नई किस्म का पंजीयन मैंने कराया है। इसमें चेरी टमाटर, अरहर और विष्णुभोग शामिल है। अरहर की नई किस्म का पंजीयन मेरे सिंगचौरा ग्राम के नाम से किया गया है। विष्णुभोग का पंजीयन मेरे नाम से हुआ है। सुगंधित धान विष्णुभोग ही सरगुजांचल की पहचान थी। मैंने इस किस्म को संरक्षित करने का प्रयास किया है। प्रयास है कि विष्णुभोग की नई किस्म का चावल बाजार में लाया जाए। इसका उत्पादन कम है लेकिन दाम अधिक होने से इसकी खेती लाभप्रद है।
-रामेश्वर तिवारी, नवाचारी कृषक सिंगचौरा
खुशी की बात है कि रामेश्वर तिवारी जी ने तीन फसलों की नई किस्म का पंजीयन कराया है। यह पेटेंट का ही दूसरा स्वरूप है। इससे न सिर्फ नई किस्म के संरक्षण का अधिकार मिलता है बल्कि इसके कई फायदे हैं। कृषक इसकी ब्रांडिंग कर बिक्री कर सकते हैं।कोई संस्था,कंपनी इस पर काम करती है तो कृषक को रायल्टी मिलती है।
-डॉ. दीपक शर्मा, प्रमुख विज्ञानी, पौध प्रजनन एवं आनुवंशिकी विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर