कवर्धा (नईदुनिया न्यूज)। जिले सहित वनांचल क्षेत्र में पोला त्योहार किसान मनाते हैं। इस दिन किसान गाय, बैलों की पूजा करते हैं। यह अगस्त-सितंबर महीने में पड़ता है। इस वर्ष सोमवार को मनाया जाएगा। भादो माह की अमावस्या तिथि को पोला मनाया जाता है। इस दिन बैलों का श्रृंगार कर उनकी पूजा की जाती है।
बच्चे मिट्टी के बैल चलाते हैं। इस दिन बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन बैलों से खेत में कोई काम भी नहीं लिया जाता है। घरों में महिलाएं व्यंजन बनाती हैं। बैल खेती में उपयोग आता है इससे अन्ना का उत्पादन होता है। अन्ना को सम्मान देने के लिए पर्व मनाया जाता है। किसान बैलों की पूजा करते हैं।
घरों में ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला, गुलगुल भजिया जैसे पकवान तैयार किए जाते हैं। गुड़हा, चीला, अनरसा, सोहारी, चैसेला, ठेठरी, खुरमी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का भोग लगाया जाएगा। किसान गौ माता और बैलों को
स्नान कराकर श्रृंगार करेंगे। सींग और खुर यानी पैरों में माहुर, नेल पालिश लगाएंगे, गले में घुंघरू, घंटी, कौड़ी के आभूषण पहनाकर पूजा करेंगे।
पोला त्योहार का महत्व
भारत, जहां कृषि आय का मुख्य स्रोत है और ज्यादातर किसानों की खेती के लिए बैलों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए किसान पशुओं की पूजा आराधना एवं उनको धन्यवाद देने के लिए इस त्योहार को मनाते है। पोला दो तरह से मनाया जाता है, बड़ा पोला एवं छोटा पोला। बड़ा पोला में बैल को सजाकर उसकी पूजा की जाती है, जबकि छोटा पोला में बधो खिलौने के बैल या घोड़े को मोहल्ले पड़ोस में घर-घर ले
जाते है और फिर कुछ पैसे या गिफ्ट उन्हें दिए जाते है।
मिट्टी से बने खिलौने खास महत्व किसान परिवार पूजा-अर्चना के लिए कृषि औजारों की सजावट और बैलों का श्रृंगार करते है। मिट्टी से बने खिलौने का इस दिन खास महत्व है। पूजा-अर्चना के बाद बधो इससे खेलते हैं। वहीं इन खिलौनों को देवी-देवताओं को अर्पित करने की परंपरा भी है। पोरा पर्व मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा है। खेती किसानी में बैल और गौ वंशीय पशुओं के महत्व को देखते
गांवों में इस दिन बैलों को विशेष रूप से सजाया जाता है। उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। शीतला देवी समेत भैसासुर, ठाकुर देवता, मौली माता, साड़हा देवता, धारण देव, परेतिन दाई, बईगा बाबा, घसिया मसान, बधधरा, कचना धुर्वा, चितावर, सतबहिनी, राय देवता, घटोरिया, चिरकुटी मुनि, सियार देवता आदि को देवी-देवताओं को मिट्टी के बैल चढ़ाकर पूजा-अर्चना की जाएगी।
क्यों पड़ा पोला नाम
विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आए थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप मे मनाया जाता है। तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे। कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहां रहते थे। तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था। एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था और सबको अचंभित कर दिया था। वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा। यह दिन बधाों का दिन कहा जाता है, इस दिन बधाों को विशेष प्यार देते है।
किस तरह मनाया जाता है त्योहार
जिले में बहुत से आदिवासी जाति एवं जनजाति रहते है। जिले सहित वनांचल क्षेत्र के गांव में पोला त्योहार पर बैल की जगह लकड़ी एवं लोहे के बैल की पूजा की जाती है। बैल के अलावा यहां लकड़ी, पीतल के घोड़े की भी पूजा की जाती है। इस दिन घोड़े, बैल के साथ-साथ चक्की हाथ से चलाने वाली की भी पूजा की जाती है। पहले के जमाने में घोड़े बैल, जीवनी को चलाने के लिए मुख्य होते थे एवं चक्की के द्वारा ही घर पर गेहूं पीसा जाता था। तरह-तरह के पकवान इनको चढ़ाये जाते हैं। सेव, गुझिया, मीठे खुरमे आदि बनांये जाते है।