टीएस पिपरिया
भिलाई। नईदुनिया
भारत को 'मसालों की भूमि' के नाम से जाना जाता है। मसाले में धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित और स्वादिष्ट बनाने के काम आता है। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होते हैं। इसकी मांग भी हमेशा बनी रहती है। यही वजह है कि कृषि विभाग इन दिनों किसानों को धनिया की खेती से होने वाली आमदनी और लाभ को बताते हुए अधिकाधिक खेती करने के लिए प्रेरित कर रहा है।
कृषि विज्ञान केंद्र पाहंदा अ दुर्ग द्वारा क्षेत्र में मसाला फसलों के अंतर्गत धनिया फसल के उत्पादन के लिए तकनीकी प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। इसके अंतर्गत केंद्र के प्रक्षेत्र पर ही धनिया के नवीनतम किस्म का बीज उत्पादन कार्यक्रम भी गत वर्ष लिया गया था। कृषक प्रक्षेत्र पर लिए गए प्रदर्शन में देखा गया कि प्रति हेक्टेयर 20 से 25 हजार खर्च कर 30 से 35 हजार रुपये शुद्ध लाभ धनिया की खेती में कमाया जा सकता है। इसके लिए उन्नत उत्पादन तकनीक जैसे बीजोपचार, सीडड्रील से बोवाई, उर्वरक प्रबंधन एवं खरपतवार नियंत्रण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। धनिया का बीज जब पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाए तब धनिया की कटाई कर लेना चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो धनिया उत्पादन की उन्नत तकनीक से किसान अच्छी-खासी आमदनी कमा सकते हैं।
मिट्टी एवं जलवायु उपयुक्त
दुर्ग के पाटन व धमधा ब्लॉक की मिट्टी एवं जलवायु धनिया उत्पादन के लिए उपयुक्त है। बोवाई सही समय में कर लेवें एवं अधिक जल भराव वाली मिट्टी का चयन ना करें। धनिया का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत को दो बार कल्टीवेटर चलाकर, रोटावेटर की सहायता से बड़े-बड़े ढेलों को तोड़ लेना चाहिए।
धनिया की उन्नत प्रजातियां
छत्तीसगढ़ धनिया-1, जवाहर धनिया-1
बोवाई का समय
मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक।
बोवाई पूर्व बीज की तैयारी :
धनिया के बीज को बोवाई से पूर्व द्विभाजित (दो भागों में) कर लेना चाहिए। द्विभाजित बीज को पानी में 6-8 घंटे भीगाकर रखना चाहिए, जिससे कि जल्दी एवं अधिक बीजों का अंकुरण प्राप्त हो सके।
बीजोपचार (फफूंदीनाशक से)
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं धनिया की फसल को मृदा जनित एवं बीज जनित रोग से बचाने के लिए फफूंदीनाशक जैसे बाविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज या ट्राइकोडर्मा विरडी पांच ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए। वहीं जमीन में उपलब्ध स्फूर (फास्फोरस) जो कि पौधों के लिए अनुपलब्धता अवस्था में होता है, को उपलब्ध अवस्था में परिवर्तित करने के लिए पीएसबी कल्चर पांच ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए। इसी प्रकार वायुमंडलीय नत्रजन को पौधों के जड़ में फिक्स (संचि) करने के लिए जैव उर्वरक एजेटोबैक्टर पांच ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए। बीज का फफूंदनाशक से उपचारित करने के 2-3 घंटे बाद जैव उर्वरक से उपचारित करना चाहिए।
बीज की बोवाई
बीज को बोने के लिए सीड ड्रील या छिड़काव विधि का उपयोग किया जा सकता है। सीड ड्रील की बोवाई करने पर कम बीज की आवश्यकता होती है तथा बीज एक निश्चित गहराई एवं दूरी पर गिरती है, जिससे कि एक समान अंकुरण प्राप्त होता है। कतार बोनी करने से कतार के बीच निदाई करने एवं कीटनाशक व फफूंदीनाशक का छिड़काव करने में सहुलियत होती है। साथ ही साथ सभी पौधों को एक समान उर्वरक एवं सूर्य प्रकाश प्राप्त होने से अधिक उत्पादन की प्राप्ति होती है। 10 से 15 किग्रा बीज प्रति हेक्टयर सिंचित खेती के लिए तथा असिंचित खेती के लिए 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर। सीड ड्रील से बोवाई के लिए 10 से 12 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर हो। वहीं कतार से कतार की दूरी 25 से 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी होनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
40 किग्रा नत्रजन, 30 किग्रा फास्फेट तथा 20 किग्रा पोटाश प्रति एकड़ उर्वरक की आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस तथा पोटाश की संपूर्ण मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। शेष नत्रजन की मात्रा बोवाई के 30 एवं 60 दिनों के बाद टॉपडेसिंग के रूप में सिंचाई के साथ देनी चाहिए। अच्छी तरह सड़ी हुई 4-5 टन गोबर की खाद को खेत की तैयारी करते समय अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए।
खेतों की तीन से चार बार सिंचाई
पहली सिंचाई बोवाई के 30-35 दिन बाद और दूसरी 60-65 दिन बाद एवं तीसरी सिंचाई 80-85 दिन बाद करनी चाहिए। 25-30 प्रतिशत पानी बचाने के लिए बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति या स्प्रिंकलर पद्धति का उपयोग करना चाहिए। यदि बोवाई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी है तो बोवाई के तुरंत बाद सिंचाई करना आवश्यक है।
खरपतवार नियंत्रण
ऑक्सीडाइआर्जिल का बोवाई के बाद तथा बीज अंकुरण के पहले 75 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। तदुपरांत बोवाई के 45 दिनों बाद गुड़ाई करनी चाहिए। इस बीमारी में पत्तियों के ऊपर सफेद पावडर जैसे दिखाई देने लगता है। 20 से 25 किग्रा सल्फर पावडर की खड़ी फसल पर भुरकाव किया जाना चाहिए अथवा 0.2 प्रतिशत घुलनशील सल्फर या 0.1 प्रतिशत डाइनोकेप का छिड़काव करना चाहिए। उचित फसल चक्र विधि को अपनाया जाना चाहिए। इस रोग से बचाव के लिए बीज का बावस्टिन/थाइरम 1.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज या ट्राइकोडर्मा/विरडी पांच ग्राम/किग्रा बीज की दर से बीज की बोवाई पूर्व उपचारित करना चाहिए।
किसानों को कर रहे प्रेरित
नई किस्म के धनिया बीज कृषि विज्ञान केंद्र में विकसित किया गया है। उन्नत तकनीक से इस किस्म के धनिया का उत्पादन लेने किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। हम इस वर्ष उद्यानिकी के माध्यम से भी धनिया को किसानों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।
-विजय जैन, कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र पाहंदा अ