कोमल वर्मा, नईदुनिया, भिलाई: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का थनौद गांव, जहां मिट्टी में जीवन का रंग भरा जाता है। यहां कुम्हार समाज के की ओर से पांच पीढ़ियों से गणेश की प्रतिमाएं गढ़ी जा रही हैं, जो आस्था के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देती हैं। जहां प्रदेश में 2016 से प्लास्टर आफ पेरिस (POP) की मूर्तियों पर प्रतिबंध लगा, वहीं थनौद ने बहुत पहले ही परंपरा और प्रकृति के सम्मान का रास्ता चुन लिया था। यहां पीओपी मूर्तियों के निर्माण पर सामाजिक प्रतिबंध है। गांव में 40 पंडालों में हर वर्ष दो हजार से अधिक मूर्तियां बनाई जाती हैं, जिससे 500 से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है।
कुम्हार समाज के सदस्य और मूर्तिकार राधे चक्रधारी बताते हैं कि पहले गांव में छोटी गणेश मूर्तियां बनाई जाती थीं, लेकिन अब बड़ी मूर्तियों की मांग बढ़ गई है। राधे ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मूर्तियों का विरोध करते हुए कहा कि गणेश प्रतिमाएं धार्मिक मान्यता के अनुसार बननी चाहिए। वे सरकार से मांग करते हैं कि AI वाली गणेश प्रतिमाओं पर रोक लगनी चाहिए। इससे भगवान गणेश की वास्तविक छवि खत्म हो रही है।
यहां की मिट्टी और कारीगरों की मेहनत ने न केवल सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान की है। इस गांव में मूर्तियों का निर्माण सुभान चक्रधारी ने शुरू किया था और अब उनकी पांचवीं पीढ़ी के विनोद चक्रधारी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। चौथी पीढ़ी के प्रेमलाल की बेटी के पति भी मूर्तिकला में सक्रिय हैं। यहां से छत्तीसगढ़ के साथ मध्य प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में भी अपनी मूर्तियां भेजी जाती है। इस गांव में गणेश और दुर्गाजी की प्रतिमाएं बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं।
20 वर्षों में गांव के 80 प्रतिशत मकान पक्के
गणेशजी को बुद्धि और समृद्धि का देवता कहा जाता है। 10 हजार की जनसंख्या वाले थनौद गांव के लोगों ने कड़ी मेहनत से इसे सच कर दिखाया है। पांच पीढ़ियों की यह कला सिर्फ आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि एक सफल आर्थिक माडल बन चुकी है। 20 वर्षों में 80 प्रतिशत कच्चे मकानों का पक्का होना इस बात का सबसे बड़ा सबूत है। यहां हर वर्ष दो हजार से अधिक प्रतिमाएं बनाई जाती है। एक पंडाल पर 10 कारीगर काम करते हैं। यहां 50 हजार से सवा लाख रुपये की कीमत वाली 15 फीट तक की प्रतिमाएं तैयार की जाती है।
नदी की मिट्टी से ऐसे बनती हैं प्रतिमाएं
मूर्तिकार राकेश चक्रधारी ने बताया कि गणेश प्रतिमा निर्माण की प्रक्रिया में शिवनाथ नदी की मिट्टी का विशेष महत्व है। मिट्टी को पहले सुखाया जाता है, फिर उसे पाउडर के रूप में तैयार किया जाता है। इसके बाद, इसे बड़े टब में भीगाकर नरम और लचीला बनाया जाता है। फिर इस मिट्टी की परत को गणेश स्ट्रक्चर पर चढ़ाया जाता है, और अंत में पेंटिंग की जाती है। मूर्ति निर्माण में महिलाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मूर्तिकार प्रेम चक्रधारी के अनुसार, महिलाएं आभूषण तैयार करने में सक्रिय भागीदारी निभाती हैं। वे गूंथे हुए मिट्टी में दाल मिलाकर उसे लचकदार बनाती हैं और फिर सांचे में डालकर गहनों का निर्माण करती हैं।
गांव के मूर्तिकार कृष्णा चक्रधारी ने बताया कि उनके पास 15 फीट से लेकर एक फीट तक की गणेश प्रतिमाएं तैयार की जा रही हैं। उन्होंने अब तक 40 गणेश मूर्तियां बनाई हैं, जिनमें छोटी प्रतिमाएं बड़े गणेश के साथ पूजा के लिए स्थापित की जाती हैं। थनौद के मूर्तिकार राधे चक्रधारी ने बताया कि उनकी बनाई मूर्तियां छत्तीसगढ़ के कई प्रमुख शहरों में झांकियों में प्रथम स्थान प्राप्त करती हैं। राजनांदगांव की बाल गणेश उत्सव समिति की मूर्ति लगातार चार वर्षों तक प्रथम रही है। इस बार कोंडागांव और पहली बार नागपुर के लिए भी मूर्तियां तैयार की गई हैं।
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