
भिलाई। पानी की कीमत भिलाई-तीन से लगे आधा दर्जन से अधिक गांव के लोगों को समझ आने लगी है। एक केमिकल युक्त नहर के चलते इन गांवों का भूजल पूरी तरह से खराब हो गया। लोगों को पीने के पानी के लिए टैंकर का इंतजार करना पड़ता है।
बता दें कि हथखोज से निकलकर अकलोरडीह, सुरडुंग, जरवाय, पर्थरा, नंदौरी, लिमतरा, सुरजीडीह होकर खारुन नदी तक जाने वाली नहर को कभी जीवनदायिनी कहा जाता था। लोग इस नहर का साफ पानी पीते थे। नहर की वजह से भूजल स्तर काफी ऊंचा रहता था। नहर के आसपास के खेतों में फसल भी अच्छी होती थी।
20 सालों में सब कुछ बदल गया। नहर में जीआई तार बनाने वाले तथा अन्य फैक्ट्रियों का केमिकल उड़ेला जाने लगा। नतीजा नहर का पानी पूरी तरह से केमिकल युक्त हो गया। जहां-जहां से यह नहर गुजरी है, उसके आसपास के खेत तो खराब हुई ही है,साथ ही गांव का भूजल भी पूरी तरह से केमिकल युक्त हो गया।
हालात ये हैं कि गलती से कोई मवेशी इस नहर का पानी पी ले तो उसकी मौत हो जाती है। बढ़ते प्रदूषण के चलते महज 20 साल में ही पूरा इलाका साफ पानी के मामले में नर्क बन गया। अकलोरडीह, उमदा तथा सुरडुंग के सैकड़ों बोर फेल हो चुके हैं। जो हैंडपंप सलामत है, उससे रसायनिक पानी आने लगा है। अब स्थिति ये आ चुकी है कि यदि एक दिन टैंकर न आए तो लोग पीने के पानी के लिए तरस जाएं।
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ये करते हैं जिम्मेदार
नहर व भूजल खराब होने की दर्जनों शिकायत क्षेत्रीय पर्यावरण संरक्षण मंडल व भिलाई चरोदा निगम के जलकार्य विभाग से की जा चुकी है, पर जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ती की गई। दोनों विभाग सैंपल जांच के नाम पर नहर व हैंडपंप का पानी ले गए। रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किया। क्षेत्रीय पर्यावरण संरक्षण मंडल ने अकलोरडीह नहर की सफाई की बात कही थी, पर सफाई के नाम पर अधिकारी नहर में चूना डालकर निकल गए। इस बात से ग्रामीणों में खासा आक्रोश है। स्थानीय ग्रामीण कुलेश्वर वर्मा, हिम्मत ठाकुर, अजय सिंह, संजय बंछोर कह भी रहे हैं कि विभाग महज खानापूर्ति कर रहा है। इधर आधा दर्जन गांवों में पीने लायक पानी नहीं बचा है।