भिलाई। रेलवे द्वारा मरीजों को निजी अस्पताल में रेफर करने के नियम में बदलाव किए जाने के बाद से कर्मचारियों, सेवानिवृत्तों एवं उनके आश्रितों को परेशान होना पड़ रहा है। रेफर के लिए जोन मुख्यालय की अनुमति की बाध्यता कर दी गई है।
बीते साल नवबंर माह में जारी इस आदेश का लगातार विरोध होने के बाद गंभीर व दुर्घटना के मामलों में तो शिथिलता दी जा रही है परंतु अन्य मामलों में रेफर करने में स्थानीय डाक्टर टालमटोल कर रहे हैं। परेशान कर्मचारी रेफर न होने पर रिएम्बर्समेंट की आस में निजी अस्पताल तो चले जा रहे हैं।
वहीं सेवानिवृत्तों की उम्मीद टूट रही है। चरोदा-दुर्ग के सेवानिवृत्तों को रेलवे के रायपुर अस्पताल में जाना पड़ रहा है, अथवा निजी अस्पताल में स्वयं के खर्च से उपचार कराना मजबूरी हो जा रही है।
रेलवे ने अपने कर्मचारियों, उनके आश्रितों व सेवानिवृत्त कर्मियों को स्वास्थ्य सुविधा दे रखी है। इसके तहत रेलवे के अस्पताल के अलावा निजी अस्पतालों को इनपैनल्ड किया गया है। जहां आवश्यक होने पर मरीजों को रेलवे के अस्पताल से रेफर किया जाता है।
रायपुर रेल मंडल (डिवीजन) के तहत करीब 11 हजार कर्मचारी आते हैं। इसमें से लगभग छह हजार कर्मचारी चरोदा बीएमवाय यार्ड, भिलाई, दुर्ग, मरोदा में कार्यरत व निवासरत हैं। वहीं सेवानिवृत्त कर्मियों की संख्या दो हजार से ज्यादा है। उक्त सभी स्वास्थ्य सुविधा के लिए चरोदा स्थित रेलवे अस्पताल पर आश्रित हैं।जहां पर सुविधाएं नाममात्र की है।
पांच नवंबर को जारी किया था आदेश
रेलवे बिलासपुर जोन के प्रिंसिपल चीफ मेडिकल डायरेक्टर (पीसीएमडी) द्वारा एमईडी/एचक्यू/एसईसीआर/आरईएफ/1201दिनांक 05-11-2021 को चीफ मेडिकल सुपरीटेंडेंट (सीएमएस) को पत्र जारी किया गया था। इसमें कहा गया है कि निजी अस्पतालों में सभी मरीजों को रेफर करना बंद करें।
गंभीर मामलों में रेफर के लिए पीसीएमडी से अनुमति अनिवार्य है। व्हाटसएप, मेल व ई-आफिस से अनुमति ले सकेंगे। अन्य मामलों में जरूरत होने पर केंद्रीय अस्पताल बिलासपुर में मरीजों को रेफर किया जाए।
शुरू से विरोध
इस पत्र के मिलने के बाद रायपुर व चरोदा के अस्पतालों में रेफरल को लेकर लगातार विवाद हो रहा है। स्थानीय डाक्टरों ने मरीजों को रेफर करने में आनाकानी शुरू कर दी है। वहीं यूनियनों के द्वारा भी विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया गया था। यूनियन ने रेलवे जीएम से भी इसकी शिकायत की गई और मरीजों को हो रही दिक्कतों की जानकारी दी जा चुकी है।
इसके बाद गंभीर व दुर्घटना के मामलों में तो परिस्थिति के मुताबिक स्थानीय स्तर मरीज को तत्काल रेफर की छूट डाक्टर को दे दी गई है। बाद में अनुमति की औपचारिकता कराई जा रही है, वहीं अन्य मामलों में नियम यथावत रखा गया है।
उम्मीद कार्ड से नाउम्मीदी
चरोदा, भिलाई, दुर्ग क्षेत्र में रहने वाले सेवानिवृत्त कर्मियों को इस नियम से ज्यादा परेशानी हो रही है। उन्हें रिएमर्समेंट की सुविधा नहीं है। वहीं रेफर भी आसान नहीं रह गया है। आवश्यकता होने पर उन्हें रायपुर अथवा बिलासपुर रेलवे अस्पताल जाने की सलाह दी जा रही है। हाल में लगातार कई ऐसे मामले आए जिसमें रेफर कराने के लिए रायपुर रेलवे अस्पताल में मरीज को भर्ती होने जाना पड़ा अथवा जान बचाने निजी अस्पताल में भर्ती होने के बाद रेफर स्वीकृत कराने परिजनों को भटकना पड़ा।
दस्तावेज पहले रायपुर और वहां से बिलासपुर भेजे जाते हैं। ऐसे में इन सेवानिवृत्त कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें दी गई उम्मीद ओपीडी बुक से नाउम्मीदी हाथ लग रही है।
रेलवे अस्पताल में न डाक्टर न स्टाफ
रेलवे का चरोदा अस्पताल में 30 बेड वाला है। इसके मुताबिक यहां न संसाधन हैं और न ही स्टाफ। अस्पताल प्रभारी सहित कुल तीन डाक्टर ही यहां पर हैं। दांत, हड्डी के डाक्टर संविदा वाले हैं व सप्ताह में दो दिन आते हैं। प्रभारी के अलावा कोई अन्य विशेषज्ञ डाक्टर नहीं हैं।
गायनिक विभाग भी सालभर से खाली है। जबकि चरोदा में रेलवे का यार्ड, सहित एक दर्जन से अधिक विभाग है। पर्याप्त सुविधा व डाक्टर के अभाव में यहां मरीज को रखने में स्वजन कतराते हैं।
--
रेलवे के अनुबंधित अस्पतालों में रेफर को लेकर तीन चार माह पहले एक आदेश जारी हुआ था। गंभीर मामलों को तत्काल रेफर कर रहे हैं। अन्य मामलों में चीफ मेडिकल डायरेक्टर कार्यालय से अनुमति आवश्यक है।
-डा. विपिन वैष्णव, सीनियर डीसीएम
--
आदेश का लगातार विरोध कर रहे हैं। रेलवे अपने कर्मचारियों, आश्रितों व सेवानिवृत्तों की जान से खिलवाड़ कर रहा है। गंभीर मामलों में भी रेफर के लिए मरीजों व परिजनों को भटकना पड़ रहा है। यूनियन उग्र आंदोलन करेगा।
-डी. विजय, संभागीय समन्वयक, रेलवे मेंस कांग्रेस
---