नई दुनिया प्रतिनिधि, बीजापुर। इस साल रक्षाबंधन 9 अगस्त को मनाया जाएगा। इसको लेकर बाजार में दुकानें लगनी शुरू हो गई है। ये राखियां भाइयों की कलाई पर बंधे इसके लिए डाक विभाग जगह-जगह पीली पेटियां भी लगा दिया है। वहीं दूसरी ओर बीजापुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर भैरमगढ़ ब्लाक मुख्यालय के शिविर में रह रही कुछ महिलाएं इस समय बांस और ताड़ के पत्तों से राखियां बना रही हैं।
समूह में काम करने वाली महिलाओं में माओवाद प्रभावित ग्राम पंचायत ईतामपारा की रहने वाले मंगलदई ने बताया कि कुछ सालों पहले उसके जेठ स्व. चैतू राम यादव (बड़े भाई) को माओवादियों ने पुलिस का मुखबिर बताते हुए हत्या उसके सामने ही कर दी थी। इस हादसे को लेकर वह कई दिनों तक सदमें थी। जेठ की हत्या के बाद उसके परिवार के अन्य सदस्यों को नक्सली नहीं मार दे। इसलिए उसके परिवार के लोग ईतामपरा को छोड़कर भैरमगढ़ में एक शिविर में जीवन यापन कर रहे हैं।
मंगलदई ने बताया कि बड़े भाई की हत्या के बाद उसने ठान लिया था वह आने वाले दिनों में कोई ऐसा काम करेगी। जिसका संबंध भाई बहन के रिश्ते से जुड़ा हुआ हो। यहां पर उसने कई महिलाओं को राखी बनाते देखा और वह इस काम से जुट गई । उसने बताया वह इस समय दुर्गा नाम से संचालित महिला समूह से जुड़ी है और पिछले कई सालों से वह राखियों का निर्माण में लगी है। भाइयों की कलाई पर राखी सजे इसके लिए वे देशी राखियां बना रही हैं। इस राखी को बनाने में वे बांस और ताड़ के पत्तों का उपयोग कर रही हैं। इन बहनों की राखियां प्रशासन बाजार में भी उपलब्ध करवाएगा।
मां दुर्गा स्व सहायत समूह अध्यक्ष फगनी कोवासी ने बताया कि इस समय राखियों का निर्माण समूह की 6 महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है। राहत शिविर में रहने वाले ईतामपारा के लोग गोदाम पारा शिविर में आ कर बसे और तैयार पर बांस और ताड़ पत्ते छिंद पत्ते से देशी राखी बना रहे हैं। भैरमगढ जनपद सीईओ मुकेश कुमार देवांगन ने बताया कि इस रक्षा बंधन भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र पूरी तरह से प्राकृतिक होगा। बांस और ताड़ के पत्तों से बनी राखियां उन्हें बांधी जाएंगी। इसके लिए समूह ने अब तक 250 राखियां बना ली हैं।
खास बात यह है कि जिला प्रशासन इन राखी व गहनों को बेचने के लिए बाजार भी उपलब्ध करवाएगा। इन राखियों की कीमत 20- 60 रूपए है। गौतरलब है कि भैरमगढ़ ब्लॉक के नक्सल प्रभावित गांव की इन महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए बांस व ताड़ के पत्तों की राखीबनाने का प्रशिक्षण दिया गया। समूह की महिलाओ ने बताया कि डिजाइनरों ने हमें बांस व ताड़ के पत्तों से राखी बनाना, फिर इस पर रंगीन मोतियों , रेशम के धागे से सजाने की बारीकियां बताई गई।
हर साल 50-60 हजार रूपए की बेच देती है राखियां करीब चार पहले शुरू किए गए इस काम में अब समूह की महिलाओं की रूचि बढ़ गई है। शुरूआती दौर में राखियों की बिक्री कम होने के बाद भी इन्होंने हार नहीं मानी और अब इस काम को बड़े पैमाने पर कर रही है। विकास खंड परियोजना प्रबंधक रोहित सोरी ने बताया कि वे पिछले तीन साल से करीब 50-60 हजार रूपए की राखियां बेच रही है। इस साल डिमांड अधिक आने से बिक्री ज्यादा होने की संभावना है।
इस साल राखियों की खरीदी अधिकारियों व कर्मचारियों के द्वारा की जाएगी। जिसके चलते राखियों की बिक्री के इस साल बड़े पैमाने पर होने की बात कही समूह द्वारा की जा रही है। समूह की महिलाओं ने बताया कि इस साल करीब एक हजार से अधिक राखियां बनाने की योजना बनाई है। और इस काम में वे लगातार जुड़ी हुई हैं।