शास्त्री स्कूल मैदान में मनेगा 47वां राउत नाच महोत्सव,छत्तीसगढ़ की लोक विरासत का अनूठा उत्सव
राउत नाच पारंपरिक नृत्य उत्सव की गूंज न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण इलाकों, जैसे सेलर, बैमा-नगोई, मस्तूरी, टेकारी आदि क्षेत्रों में भी खूब सुनाई देती है। इन इलाकों में यादव समाज के पुरुष रंगीन वस्त्र पहनकर घर-घर जाकर दोहे गाते और नृत्य करते हैं, जो दर्शकों को छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जोड़ता है।
Publish Date: Mon, 04 Nov 2024 08:25:11 AM (IST)
Updated Date: Mon, 04 Nov 2024 08:25:11 AM (IST)
23 नवंबर को लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान मे होगा 47वें राउत नाचा महोत्सव का आयोजनHighLights
- छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य रूपों में राउत नाचा का एक खास स्थान है।
- यह नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य की सांस्कृतिक और लोक धरोहर का प्रतीक है।
- कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी से राउत नाच की शुरुआत हो जाती है।
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य रूपों में राउत नाचा का एक खास स्थान है। यह नृत्य न केवल राज्य की सांस्कृतिक और लोक धरोहर का प्रतीक है, बल्कि भगवान कृष्ण के प्रति कृतज्ञता भी दर्शाता है। इसी धरोहर को संरक्षित और प्रस्तुत करने के उद्देश्य से इस साल लाल बहादुर शास्त्री स्कूल में 47वें राउत नाच महोत्सव का आयोजन 23 नवंबर को किया जाएगा। महोत्सव की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले साल यदुवंशी समाज के 71 दलों के लोगों ने इस महोत्सव में भाग लेकर इसे भव्य बनाया था।
कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी से राउत नाच की शुरुआत हो जाती है और इसके बाद एकादशी के पड़ने वाले पहले शनिवार को शास्त्री स्कूल में महोत्सव का आयोजन होता है।
पौराणिक कथाओं और वीरता का प्रतीक राउत नाच
राउत नाच भगवान कृष्ण और गोपियों के नृत्य जैसा माना जाता है। इसमें कुछ लोग गीत गाते हैं, कुछ वाद्ययंत्र बजाते हैं और कुछ चमकीले रंगीन कपड़े पहनकर नृत्य करते हैं। नर्तक अपने हाथों में रंगीन सजी हुई छड़ी और धातु की ढाल लेकर आते हैं और उनकी कमर तथा टखनों में घुंघरू बंधे होते हैं। यह नृत्य राजा कंस और भगवान कृष्ण के बीच हुई पौराणिक लड़ाई और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिनिधित्व करता है। नर्तक इस नृत्य के माध्यम से बहादुर योद्धाओं का सम्मान करते हुए परंपरागत योद्धा भावना को संजोते हैं।
धार्मिकता और सांस्कृतिक जुड़ाव का अनूठा संगम
राउत नाच का आयोजन यदुवंशी समुदाय द्वारा किया जाता है, जो इसे भगवान कृष्ण के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करने के रूप में मनाते हैं। यह नृत्य राजा खानसा और यादव समुदाय के ग्वालों के बीच हुई पौराणिक लड़ाई का भी उल्लेख करता है। वर्तमान युग में भी यह नृत्य समुदाय के लिए अपनी सांस्कृतिक परंपराओं, मूल्यों और आस्थाओं को संजोने का माध्यम है, जो छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक समृद्धि और मूल्यों को जीवंत बनाए रखता है।
छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाके का है पर्व
राउत नाच छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाके का पर्व है। क्योंकि मैदानी क्षेत्रों में कृषि ही मुख्य धंधा होता है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के रायपुर व बिलासपुर जैसे मैदानी इलाकों में इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
शौर्य का प्रदर्शन
इस नृत्य के माध्यम से यदुवंशी अपने शौर्य का भी प्रदर्शन करते हैं, क्योंकि नृत्य के दौरान वे अपना मुख्य हथियार लाठी भी रखे होते हैं। इस नृत्य में वे अपनी गौरवशाली परंपरा और अपने शक्ति का प्रदर्शन करते हुए कई हैरतअंगेज कारनामा करते हैं, जो देखने लायक रहता है।