Bilaspur Dhirendra Sinha Column: धीरेंद्र सिन्हा, बिलासपुर नईदुनिया। कोरोना महामारी के बीच उच्च शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश से लेकर कई मामलों ने चिंता बढ़ा दी है। आर्थिक स्थिति चरमराई हुई है। निजी संस्थानों में स्थिति और बदतर है। कालेज को ऊंचा उठाने तमाम तरीके अपनाए जा रहे हैं। कुछ निजी संस्थान विद्यार्थियों को ठगने में भी पीछे नहीं हैं। वहीं संकट की इस घड़ी में सीएमडी व डीपी विप्र पीजी महाविद्यालय के एलुमनी ने अपने कर्तव्यों का लोहा मनवाया है।
शिक्षा के मंदिर को ऊंचा उठाने कदम बढ़ाया है। संस्था को बतौर धनराशि व सुविधा संसाधन के अन्य सामान उपलब्ध करा रहे हैं। ऐसे विद्यार्थियों को देख गुरुजनों के साथ समाज भी गौरवान्वित है। एक मंच से सेवानिवृत्त प्राध्यापक ने कहा भी कि संकट में ना सिर्फ एलुमनी बल्कि प्राध्यापक और सेवानिवृत्त शिक्षकों को भी अपना धर्म निभाना होगा, ताकि संस्था को बचाया जा सके। भावी पीढ़ी को संस्था के प्रति उनके दायित्वों का बोध कराया जा सके।
स्वाभिमान के लिए था जरूरी: अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय को आखिर कर नौ साल बाद यूजीसी व शिक्षा मंत्रालय से 12बी का दर्जा मिल गया। केंद्र सरकार से जैसे ही चिट्ठी विश्वविद्यालय पहुंची चारों ओर खुशी की लहर दौड़ गई। अब शोध और नवाचार के साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुदान का रास्ता भी साफ हो गया। इसका श्रेय किसे मिले! पहले वाले एक साहब ने राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद की ग्रेडिंग के साथ समाज में सम्मान भी हासिल किया।
पीएचडी और 12बी को लेकर उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली।इसका उन्हें आखिर तक मलाल था। अब नए वाले साहब के लिए यह एक चुनौती के साथ नाक का सवाल था। इसे उन्होंने स्वीकार करते हुए अपना कौशल का प्रयोग किया। एक ही झटके में 12 बी हासिल कर समाज को बता दिया कि हम भी किसी से कम नहीं हैं! यह तो सिर्फ एक छोटा सा ट्रेलर था। पूरी पिक्चर अभी बाकी है।
फेरबदल के साथ अब दलबदल: गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में नए मुखिया के आते ही प्रशासनिक फेरबदल शुरू हो चुका है। जिस तेजी के साथ अकादमिक कामकाज को अंजाम दिया जा रहा है उसी तेजी से विभागों में सर्जरी भी जारी है। फेरबदल के बीच कुछ माहिर खिलाड़ी दलबदल की राजनीति में विश्वास करने लगे हैं। भला हो भी क्यों ना। पहले वाले अधिकारी के साथ जमकर मलाई खाई। फिर कुर्सी खिसकने का डर समाया तो पाला बदलने लगे हैं।
चुपके-चुपके साहब को अहसास दिलाने लगे हैं कि हम तो इतने वर्षों से आपका ही इंतजार कर रहे थे। पहले वाले के साथ प्रशासनिक भवन से दिल्ली तक वह दूरी थी। हम आपको बता नहीं सकते हमारी मजबूरी थी। मगर इन प्रतिभावान अधिकारियों को कौन समझाए कि साहब ने यहां आने से पहले ही गुजरात में ही पूरी कुंडली बनवा ली थी। अब तो साहब शुभ मुहूर्त निकाल सिर्फ काम को अंजाम दे रहे हैं।
क्रिकेट में बड़े धोखे हैं: कोरोना महामारी के बीच लोगों ने खेल के महत्व को जाना। योग और ध्यान के लाभ को समझा। पढ़ाई के साथ खेल गतिविधियों में भविष्य निर्माण को प्राथमिकता मिली। बिलासपुर में भी यूं तो सभी खेलों का विशेष महत्व है। क्रिकेट को लेकर रुचि अधिक है। लेकिन, उन अभिभावकों और क्रिकेट में रुचि रखने वाले खिलाड़ियों को कौन समझाए कि यहां क्रिकेट के खेल में बड़े धोखे हैं।
चहेतों को आगे बढ़ाया जाता है। प्रतिभाएं यहां दम तोड़ रही हैं। खिलाड़ियों का यह भी आरोप है कि शासन ने जल्द दखल देकर कार्यकारिणी में बदलाव नहीं किया तो बिलासपुर में क्रिकेट गलियों तक सिमट जाएगा। कुछ पदाधिकारी राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। यही वजह है कि क्रिकेट में अब यहां रुचि कम होने लगी है। स्कूल और कालेजों में भी क्रिकेट के बजाय दूसरे खेलों को अधिक महत्व मिलने लगा है। क्रिकेट आपसी स्पर्धा तक सिमटने लगा है।