राधाकिशन शर्मा। Bilaspur News: एक मार्च का दिन बिलासपुरवासियों के लिए उत्सव से कम नहीं था। देश के नक्शे पर बिलासा एयरपोर्ट अपना नाम दर्ज करा रहा था। परिसर में जलसा का आयोजन किया गया। सीएम और नागर विमानन मंत्री रायपुर और दिल्ली से वर्चुअल जुड़े हुए थे। मंच पर भाजपा व कांग्रेस के दिग्गजों की मौजूदगी थी। कहते हैं न, मौका मिले और भीड़ हो तो नेतागीरी भी उसी अंदाज में रफ्तार पकड़ लेती है। हुआ भी यही। सत्ता और विपक्षी नेताओं से खचाखच भरे मंच में राजनीति होने लगी। भाजपा के दो दिग्गज नेताओं को जब माइक मिली तो तारीफों के पुल बांध दिए। हमने ये किया वो किया और ये भी हम ही कर रहे हैं। एक ने तो अपने संकल्प पूरा होने की खुशी भी जाहिर कर दी। जिले के प्रभारी मंत्री भी भला कहां चूकने वाले थे। मंच तो उनका अपना था न, शब्दों के तीर भी जमकर छोड़े।
ओह फिर चूक गए पंडितजी
पंडितजी के साथ एक बार फिर बड़ी राजनीति हो गई। ऐसा गणित कि मौके पर मौजूद होने के बाद भी न माइक मिली और न ही लोगों के बीच अपनी भावना प्रकट करने का मौका। जबकि मौका और अवसर दोनों भरपूर था। वो तो भला हो पर्दे के पीछे आयोजन को अंजाम देने वाले आयोजकों का जिन्होंने मंच पर कुर्सी दे दी। कोई दूसरा कुर्सी पर कब्जा न करे इसलिए नाम की पर्ची भी चिपका दी थी। मतलब साफ है। उनकी कुर्सी आने से पहले ही रिजर्व करा दी गई थी। कुर्सी मिल गई इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। कुर्सी तो दी पर माइक हाथ लगाने नहीं दी। पंडितजी के लिए अफसोस की बात ये कि उनके सामने ही दो भाजपाइयों ने दमदारी के साथ अपनी बात रखी। सत्ताधारी दल का हिस्सा होने के बाद उन्हें बोलने का अवसर नहीं मिला। पंडितजी एक बार फिर चूक गए।
एक पटवारी सब पर भारी
जर, जोरू और जमीन। ये ऐसी चीज है जिसे लेकर आदिकाल से जोर रहा है। जोर के साथ विवाद और संघर्ष की स्थिति भी बनती रही है। तब और अब में जमीन आसमान का अंतर आ गया है। तब बात-बात पर तरह-तरह के डरावने अस्त्र-शस्त्र निकल जाते थे। महाभारत काल में तो गजब ही हो गया था। समय के साथ इसमें बदलाव भी आया। अब पूरा जोर राजस्व अमलों पर आ गया है। इसमें भी पटवारी की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। पटवारी सब पर भारी होते जा रहे हैं। तभी तो लिंगियाडीह से लेकर राजधानी तक ऐसा माहौल बना कि सब तरफ हाहाकार मच गया। शिकायत के बहाने किनारे लगा दिए गए। चर्चा आम है कि जिस दिन राज जुबान पर आ गया साहबों को मुंह छिपाने की जगह तलाशनी पड़ेगी। फिलहाल तो सब पर भारी पटवारी अपनी पीड़ा किसी को बयान नहीं कर पा रहे हैं।
चना-मुर्रा और गुलाब का फूल
एक मार्च का दिन इतिहास के पन्ने में दर्ज हो गया है। शहरवासियों की बहुप्रतीक्षित मांग पूरी हुई। इसे यादगार बनाने के लिए कार्यक्रम भी हुआ। मंत्री से लेकर संत्री तक की मौजूदगी रही। बजट सत्र चल रहा था। लिहाजा प्रभारी मंत्री, नेता प्रतिपक्ष और विधायकों को उड़न खटोला से रायपुर से लेकर आए। एयरपोर्ट परिसर में लोग अपने-अपने रंग में नजर आए। पहली फ्लाइट से संगमनगरी जाने वालों का स्वागत सत्कार भी अपने अंदाज में करते रहे। सांसद सपत्नीक यात्रियों को गुलाब का फूल भेंट कर रहे थे तो शहर के प्रथम नागरिक यात्रियों को चूना-मुर्रा खिलाकर छत्तीसगढ़िया भाव जगा रहे थे। पारंपरिक वेशभूषा पहने आदिवासी मांदर की थाप पर कर्मा गाते झूम रहे थे। त्योहार जैसा माहौल था। इसी बीच निजी विमान कंपनी का विमान आसमान से लैंड किया और रनवे पर धीरे-धीरे रंगने लगा। एप्रान से ठीक पहले वाटर केनन सैल्यूट हुआ। रोमांचित करने वाला दृश्य था।