धीरेंद्र सिन्हा, बिलासपुर। Bilaspur News: प्रख्यात गजल गायक पंकज उधास की एक गजल हुई महंगी बहुत ही शराब, के थोड़ी थोड़ी पिया करो। पियो लेकिन रखो हिसाब, के थोड़ी थोड़ी पिया करो... काफी हिट हुई थी। लाकडाउन में शराब के शौकीनों की स्थिति भी कुछ इसी तरह है। वे ब्लैक में अधिक दाम पर खरीद रहे हैं, जिसे वे हर दिन थोड़ी-थोड़ी अपने हिसाब से गटक रहे हैं। लेकिन, चिंता की बात यह है कि बंद के बाद भी उपलब्ध कौन करा रहा है। पुलिस मौन है। अब पता चला है कि इस अवैध कारोबार में युवाओं की भी भागीदारी है। लाकडाउन के पूर्व शराब खरीदकर जमा कर लिया था। अब वे उसे तीन से चार गुना अधिक दाम में बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं। पढ़े-लिखे युवा संकट की इस घड़ी में लोगांे को बचाने के बजाय नशे के कारोबार से जुड़कर भविष्य निर्माण का सपना देख रहे हैं। इसे अब विडंबना कहें या अवसर।
शिक्षा के मंदिर में कोरोना
कोरोना का प्रकोप हर घड़ी बढ़ रहा है। शिक्षा की नगरी में मानों शिक्षक, अधिकारी और कर्मचारी ही इसके निशाने पर हैं। अप्रैल का तीसरा सप्ताह शिक्षा के क्षेत्र में प्रलय लेकर आया है। स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी में एक के बाद एक सैकड़ों संक्रमित मिल चुके हैं। हाल ही में अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के एक बड़े अधिकारी, एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी समेत इंजीनियरिंग कालेज कोनी के एक प्रोफेसर को निगल चुका है। इन परिवारों का सब कुछ छीनने के बाद भी ऐसा लग रहा है कि मानों कोरोना का बदला अभी भी बाकी है। कोविड- 19 के दिशा- निर्देशों के पालन के साथ ही सुरक्षा को लेकर कुलपति, कुलसचिव और प्राचार्य हर संभव प्रयास में जुटे हुए हैं। लेकिन, उन्हें भी पता है कि जरा- सी लापरवाही बड़ी महंगी पड़ सकती है। शिक्षा के मंदिर से एक सदस्य का जाना भी देश के लिए बड़ी क्षति है।
आखिरी इच्छा में फीस जमा
निजी स्कूल अब बाजार बन गए हैं। शिक्षा का मंदिर कहना एकदम गलत बात होगी। यहां व्यक्ति की भावनाएं और इंसानियत का कोई मोल नहीं है। न्यायधानी भी इससे अछूता नहीं है। संकट की इस घड़ी में भी यहां के अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की मनमानी जारी है। अभिभावकों को फीस के नाम पर तंग करने के साथ उनके जीवन से खिलवाड़ कर रहे हंै। विगत एक साल से आर्थिक संकट से जूझ रहे पालकों की दयनीय स्थिति है। इसके बाद भी प्रबंधन द्वारा मोबाइल के माध्यम से मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। कभी बच्चे को आनलाइन कक्षा से हटाकर तो कभी वाट्सएप गु्रप में सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जा रहा है। कोरोना संक्रमित होने के बाद कुछ पालक अस्पताल में भर्ती हैं। फिर भी उनके मन में एक ही अंतिम इच्छा शेष है। मरने से पहले किसी भी तरह से बच्चे की फीस जमा करनी है।
ई खेल से बच्चे बीमार
लाकडाउन के कारण खेल मैदानों में ताला जड़ा हुआ है। खेल गतिविधियां पूरी तरह से बंद हैं। आनलाइन योग और अन्य फिटनेस मंत्र दिया जा रहा है। बड़े इसमें शामिल होकर अपनी सेहत का ख्याल भी रख रहे हैं। वहीं छोटे बच्चे बिल्कुल रुचि नहीं ले रहे हैं। उल्टा मोबाइल पर ई-खेल (वीडियो गेम्स) में मस्त हैं। पढ़ाई के नाम पर तो कभी अभिभावकों से छिपकर इसमें व्यस्त हैं। जबकि कोरोना काल में इसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। इसके बाद भी कई घरों में बच्चे दिनभर लगे रहते हैं। इससे उनमें अनिद्रा, तनाव के साथ अवसाद देखा जा रहे हैं। मनोविज्ञानियों की मानें तो इस वक्त परिवार को एक होने की जरूरत है। बच्चों के साथ समय बिताने के साथ मोबाइल से जुड़ी गतिविधियों को कम करके सेहत को बेहतर बनाया जा सकता है। सुबह घर में सूर्य दर्शन और मेडिटेशन से इम्युनिटी को बढ़ाया जा सकता है।